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________________ सातवां अध्ययन : सत्य-संवर ६३३ किस प्रकार का सत्य बोला जाय ? ? — सत्य के विषय में पूर्वोक्त सब झमेलों को देख कर साधक संशय में पड़ जाता है कि वास्तव में सत्य क्या है ? कौनसा सत्य बोलना चाहिए ? पूर्वोक्त सूत्रपाठ के विवेचन से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि दस प्रकार की असत्याभाषा और दस प्रकार की सत्यामृषा भाषा को छोड़कर १२ प्रकार की असत्यामृषा और १२ ही प्रकार की प्राकृत आदि भाषाओं एवं १६ वचनभेदों का विवेक करके दश प्रकार का सत्य बोला जाय तो वह वचन सत्यवचन कहलाएगा । इतने पर भी और स्पष्ट करने के लिए शास्त्रकार कहते हैं— जं तं देहि विभत्ति वन्नजुत्त" इसका आशय यह है कि जो वचन ' द्रव्यों से संगत हो, गुणों से सम्बन्धित हो, पर्यायों से सम्बद्ध हो, कर्म (असिम सिकृषि आदि कर्म या उठाना रखना आदि कर्म) से, तथा विविध कलाओं से जिसका सम्बन्ध हो, जो सिद्धान्तों से संगत हो, वह सब सत्यवचन है । तथा नाम, आख्यात, निपात, तद्धितपद, समासपद, सन्धिपद, हेतु, यौगिक, उणादिपद, क्रियाविधान, धातु, स्वर या रस, विभक्ति और वर्ण, इन सबसे युक्त पूर्वापर संगत वचन भी सत्यवचन है । नाम आदि पदों का संक्षेप में स्पष्टीकरण करना आवश्यक है । वह इस प्रकार है नामपद - किसी वस्तु को पहिचानने के लिए व्यवहार में कोई नाम दे दिया जाता है, या संज्ञा दे दी जाती है, उसे नाम कहते हैं । नाम दो प्रकार का होता हैव्युत्पन्न और अव्युत्पन्न । राम, देवदत्त आदि प्रकृति और प्रत्यय से सिद्ध व्युत्पन्न नाम हैं, और se, sवित्थ आदि प्रकृति प्रत्यय से असिद्ध अव्युत्पन्न नाम हैं । १ – द्रव्य का लक्षण है – 'उत्पाद - व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्, सद् द्रव्यस्य लक्षणम्' ( जो उत्पत्ति, नाश और स्थिरता से युक्त हो, वह सत् है । और यह सत् द्रव्य का लक्षण है) अथवा 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' (गुण और पर्याय वाला द्रव्य है ) २. गुण का लक्षण द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा:' ( जो द्रव्य के आश्रित रहते हों और निर्गुण हों, वे गुण हैं) अथवा ' सहभाविनो गुणाः' (द्रव्य के साथ सदा रहने वाले गुण होते हैं ३. पर्याय का लक्षण - क्रमभाविनः पर्यायाः' (जो द्रव्य के साथ क्रम से होते हैं, एक साथ नहीं रहते हैं, वे पर्याय कहलाते हैं । जीव, पुद्गल, धर्माधर्मादि ६ द्रव्य हैं, इनके अलग-अलग गुण हैं, जसत्र के ज्ञानादि गुण हैं, पुद्गल के रूपादि गुण हैं, तथा रूपादि गुण के काला, पीला, नीला आदि पर्याय हैं । इन सबके विषय में पच्चीस बोल का थोकड़ा, बृहद्रव्यसंग्रह, पंचाध्यायी आदि ग्रन्थों से जान लेना चाहिए । संपादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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