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सातवां अध्ययन : सत्य-संवर
से मिश्रित हो, चारित्रनाशक तथा स्त्री आदि विकथाओं को प्रगट करने वाला हो अथवा फूट डालने वाला तथा व्यर्थ की डींगे हांकने वाला हो, जो बिना मतलब की बकवास और कलह पैदा करने वाला हो, जो अनार्योंपापकर्म में प्रवत्त म्लेच्छों द्वारा बोलने योग्य वचन हो, अथवा अन्याय का पोषक हो, दूसरों पर मिथ्या दोषारोपण करने वाला तथा विवाद पैदा करने करने वाला हो, दूसरों की बिडम्बना-झूठी आलोचना करके फजीहत करने वाला हो, अनुचित जोश और धृष्टता से भरा हुआ हो, लज्जारहितअपशब्द हो, लोकनिन्दनीय हो, तथा जिसे अच्छी तरह न देखा हो, अच्छी तरह न सुना हो व अच्छी तरह न जाना हो अथवा जो हकीकत के विपरीत रूप में देखा हो, सुना हो या जाना हो, उस विषय में किञ्चित् मात्र भी नहीं कहना चाहिए । अपनी प्रशंसा और दूसरों की निन्दा करना भी असत्य है। जैसे किसी से कहना कि 'तू उत्तम स्मरणशक्ति वाला-मेधावी नहीं है, भुलक्कड़ है, तू धनिक नहीं है, दरिद्र है, धर्मप्रेमी नहीं है,अधर्मी है, तू कुलीन नहीं है, अकुलीन है, तू दाता नहीं है, कंजूस है, तू शूरवीर नहीं, डरपोक है, तू सुन्दर नहीं कुरूप है, तू भाग्यशाली नहीं, भाग्यहीन है, तू पंडित नहीं, मूर्ख है, तू बहुश्रुत नहीं,अल्पज्ञ है, तू तपस्वी नहीं है, भोजन-भट्ट है, परलोक के विषय में तेरी बुद्धि संशयरहित नहीं है, अर्थात् तू संशयग्रस्त-नास्तिक है, अथवा जाति (मातृपक्ष), कुल (पितृपक्ष), रूप, व्याधि (कोढ़ आदि दुःसाध्य रोग) तथा रोग (बुखार आदि रोग) के निमित्त से भी परपीड़ाकारी निन्दनीय वचन यदि सत्य हों तो भी असत्य होने से सदा के लिए वर्जनीय समझने चाहिएँ । तथा जो वचन द्रोहयुक्त हैं, अथवा द्विधा से भरे हैं,अथवा द्रव्य और भाव दोनों प्रकार से दूसरे से शिष्टाचार अथवा उपकार का उल्लंघन करने वाले हैं, वे सत्य हों तो भी नहीं बोलने चाहिए। प्रश्न होता है कि तब फिर किस प्रकार का सत्य बोलना चाहिए ? (उत्तर में कहते हैं) 'जो त्रिकालवर्ती पुद्गलादि द्रव्यों से, द्रव्य की नई-पुरानी क्रमवर्ती पर्यायों से, उनके सहभावी वर्ण आदि गुणों से, कृषि आदि कर्मों से या उठाने-रखने आदि चेष्टाओं से, चित्रकला आदि अनेक शिल्पों से तथा आगमों के सैद्धान्तिक अर्थों से युक्त हो, तथा व्युत्पन्न या अव्युत्पन्न नाम, तीनों काल के वाचक क्रियापदों, अव्यय, प्र, परा आदि (जिनके जुड़ जान पर धात्वर्थ बदल जाता है) उपसर्गों, प्रत्यय लगाने पर नये अर्थ के बोधक तद्वितपद समासपद,