________________
श्री प्रश्नब्याकरण सूत्र (नवत्तळां) नहीं कहना चाहिए । (अथ) प्रश्न होता है, (तु पुणाइ) तो फिर (केरिसकं) कैसा (सच्चं) सत्य भासियव्वं) बोलना चाहिये ? (तं) वह सत्य बोलने योग्य है, (ज) जो (दव्वेहि) त्रिकालवर्ती पुद्गलादि द्रव्यों से, (पज्जवेहि) नये-पुराने आदि वस्तु के क्रमवर्ती पर्यायों से (य) तथा (गुर्गोह) वर्णादि सहभावी गुणों से (कम्मेहिं) कृषि आदि कर्मों से अथवा उठाने-रखने आदि कर्मों से (बहुविहेहि सिप्पेहि) अनेक प्रकार के चित्रकला, वस्तुकला आदि शिल्पों से (य) तथा (आगमेहि) सिद्धान्तसम्मत अर्थों से युक्त हो, (नामक्खायनिवाउवसग्गतद्धियसमाससंधिपदहेउजोगियउणादिकिरियाविहाणधातुसरवित्तिवन्नजुत्त) व्युत्पन्न या अब्युत्पन्न नाम-संज्ञापद, आख्यात–त्रिकालात्मक क्रियापद, निपात-अव्यय, प्र परा आदि उपसर्ग, तद्धितपदअर्थाभिधायक प्रत्यय, समासपद, सन्धिपद, सुबन्ततिङ्गन्त विभक्त यन्तपद, हेतु, यौगिकपद, उणादि-प्रत्ययान्तपद, क्रियाविधान-सिद्धक्रियापद, भू आदि धातु, अकारादि स्वर, अथवा षड्ज इत्यादि गीतस्वर, अथवा ह्रस्वदीर्घप्लुतरूप मात्रोच्चारणकालसूचक स्वर, कहीं 'रस' पाठ है, वहाँ श्रृंगार आदि ६ रंस, प्रथमा आदि विभक्ति, स्वरव्यंजनात्मक वर्णमाला, इन सबसे युक्त हो, वह सत्य है । (तिकल्लं) त्रिकालविषयक (सच्चं) सत्य (दसविहंपि) दस प्रकार का भी होता है। वह सत्य (जह) जैसे (भणियं) मुंह से कहा जाता है, (तह) वैसे ही (कम्मुणा) कर्म-लेखन, हाथ पैर और आँख की चेष्टा, इंगित, आकृति आदि. क्रिया से भी अथवा जैसा बोला है, जैसा ही करके बताने से, वचन के अनुसार. अमल करने से ही सत्य, (होइ) होता है । (य) तथा (दुवालसविहा) बारह प्रकार की (भासा होइ) भाषा होती है, (य) और (वयणंपि सोलसविहं होइ) वचन भी १६ प्रकार का होता है । (एन) अरहंतमणन्नायं) अर्हन्त भगवान द्वारा अनुज्ञात -- आदिष्ट (य) तथा (सम्मिक्खियं) भलीभांति सोचा विचारा हुआ सत्यवचन (कालंमि) अवसर आने पर (संजएण) संयमी साधु को (वत्तव्य) बोलना चाहिए।
मूलार्थ-श्री गणधर सुधर्मास्वामी अपने प्रधान शिष्य श्री जम्बूस्वामी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं जम्बू ! यह सत्य नाम का दूसरा संवरद्वार है, जो सत्पुरुषों, या गुणिजनों मुनिजनों के लिए हितकर है, निर्दोष है, पवित्र है, मोक्ष तथा सुख का कारण है, शुभ बोलने की इच्छा से उत्पन्न होता है, सुन्दर सुस्पष्ट वचनरूप है, सुन्दर ब्रतरूप है, इससे पदार्थ का भलीभांति कथन किया जाता है, सर्वज्ञ देवों द्वारा यह भलीभांति देखा परखा हुआ है, यह सब प्रमाणों से सिद्ध है, इसका यश भी निराबाध है, तथा उत्तम देवों,