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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र 'पक्खीणं पिव गमणं' - पक्षियों को उड़ते समय जैसे आकाश का ही आधार होता है । आकाश बिना कोई भी पक्षी अधर में टिक नहीं सकता। वैसे ही आध्यात्मिक गगन में उड़ने के लिए अहिंसा आधाररूप है । अहिंसा के आधार के बिना कोई भी अध्यात्मसाधक अध्यात्म में टिक नहीं सकता । अथवा जैसे पक्षियों के लिए आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक गमन हितकर है, उन्हें पींजरे आदि की परतंत्रता दुःखदायिनी मालूम होती है ; वैसे ही अध्यात्मसाधक के लिए स्वतंत्रतापूर्वक अहिंसा के आध्यात्मिक गगन में विचरण करना हितकर होता है, वह मोहमाया की परतंत्रता में सुखपूर्वक नहीं जी सकता । ५३४ 'तिसियाणं पिव सलिलं' - जैसे प्यास से छटपटाते हुए जीवों को पानी जीवनदान और शान्तिप्रदान करता है ; वैसे ही अहिंसा आशा तृष्णा की प्यास से व्याकुल Saint अपूर्व शान्तिप्रदान करती है । 'खुहियाणं पिव असणं' - जैसे क्षुधा से पीड़ित प्राणियों को भोजन सुख और बल देता है, वैसे ही अहिंसा पीड़ित प्राणियों को सुख और बल प्रदान करती है । 'समुद्दमज्झे व पोतवहणं' - समुद्र के बीच में डूबते हुए मनुष्य को जैसे जहाज उबारने वाला होता है, वैसे ही अहिंसा संसारसमुद्र में डूबते हुए प्राणियों को उबारने वाली है । 'चउपयाणं व आसमपयं' – चौपाये जानवरों को जैसे पशुशाला ( गोष्ठ ) सुरक्षित रूप से आश्रय देती है, वैसे ही अहिंसा भी चारों गतियों के प्राणियों को सुरक्षित स्थान देने वाली है । 'हटियाणं व ओसहिबलं ' — जैसे औषधि भयंकर रोग की पीड़ा से आर्त्तनाद करने वाले प्राणियों को उनकी पीड़ा मिटा कर स्वास्थ्य और बल प्रदान करती है ; वैसे ही अहिंसा द्वेष, वैर आदि भावरोगों से अशान्त जीवों के रोग मिटाकर उन्हें आत्मिक स्वास्थ्य और बल प्रदान करती है । 'अडवीमज्झे वि सत्थगमणं - भयंकर अटवी में सुरक्षा के साधनों से युक्त सार्थवाहों का सार्थ (संघ) जैसे हिंसक प्राणियों और लुटेरों से जानमाल की रक्षा करता है, वैसे ही भयानक संसार - वन में भटकते हुए प्राणियों की मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, प्रमाद आदि आत्मधन के लुटेरों तथा आत्मगुणों के विध्वंसकों से यह अहिंसा भगवती रक्षा करती है । तो विसितरिका अहिंसा पुढविजल सव्वभूयखेमकरी' - उपर्युक्त पंक्ति में शास्त्रकार ने अहिंसा की विशेषता बताई है। तीर्थंकरों ने अहिंसा को केवल मनुष्यों और आंखों से दिखाई देने वले द्वीन्द्रिय से ले कर पंचेन्द्रिय जीवों तक ही नहीं,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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