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________________ ५३२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र युक्त होने से इसे भगवती कहा गया है । भग का अर्थ ज्ञान भी होता है, अहिंसा प्रशस्त ज्ञान वाली है । यह संसार के सम्पूर्ण ऐश्वर्यो का निधान भी है । इन सब कारणों को लेकर अहिंसा को भगवती कहा गया है, यह उचित ही है । भगवती अहिंसा की विविध उपमाएँ पूर्वोक्त सूत्रपाठ में शास्त्रकार ने अहिंसा के गुणनिष्पन्न ६० नाम बता कर उसकी व्यापकता और विविधरूपधारकता का निरूपण किया है । अब इस सूत्रपाठ अहिंसा भगवती को अनेक लोकप्रसिद्ध उपमाएँ दे कर उसकी विशेषता बताई गई है | मूलपाठ एसा सा भगवती अहिंसा जा सा भीयाण विव सरणं, पक्खीणं पिव गमरणं, तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव असणं, समुद्दमज्झे व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं, दुहट्टियाणं च ओसहिबलं, अडवीमज्झे व सत्यगमणं, एत्तो विसिट्ठ तरिका अहिंसा जा सा पुढवि-जल-अगणि मारुय वणस्सइ-बीजहरित जलयर थलचर- खहचर तस-यावर सव्वभूयखेमकरी । संस्कृतच्छाया एषा सा भगवती अहिंसा या सा भीतानामिव शरणम्, पक्षिणामिव गमनम्, तृषितानामिव सलिलम्, क्षुधितानामिवाशनम्, समुद्रमध्ये इव पोतवहनम्, चतुष्पदानामिव आश्रमपदम् दुःखातिकानामिव औषधिबलम्, अटवीमध्ये इव सार्थगमनम् ; एतेभ्यो विशिष्टतरिकाऽहिंसा या सा पृथिवीजलाग्नि- मारुत-वनस्पति-बीज हरितजलचरस्थलचर- खेचरत्र सस्थावरसर्वभूतक्षेमंकरी । पदार्थान्वय- ( एसा ) यह (सा) पूर्वोक्त ( भगवती ) पूज्या (अहिंसा) अहिंसा, ( जा ) जो है (सा) वह (भीयाणं ) भयभीत प्राणियों के लिए (सरणं विव) शरण के समान है । ( पक्खीणं) पक्षियों के लिए (गमणं पिव) आकाश में गमन के तुल्य है । (तिसियाणं) प्यासों के लिए ( सलिलं पिव) पानी के समान है । ( खुहियाणं) भूखों के १ ' अडवीमज्झे विसत्थगमणं' पाठ भी कहीं-कहीं मिलता है । - संपादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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