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________________ ६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र मूलपाठ जम्बू !' इणमो अण्हय-संवरविणिच्छ्यं पवयणस्स निस्संदं । वोच्छामि णिच्छयत्थं सुहासियत्थं महेसीहि ॥ १ ॥ संस्कृत - छाया जम्बू ! इदमास्नवसंवर विनिश्चयं प्रवचनस्य निस्यन्दम् । वक्ष्यामि निश्चयार्थ सुभाषितार्थं महर्षिभिः ॥१॥ पदार्थान्वय- ( जम्बू) हे जम्बू ! (महेसीहि) महर्षि तीर्थंकरों ने, (सुहासियत्थं ) जिसका अर्थ भलीभांति बताया है, (अण्हयसंवरविणिच्छयं) जिसमें आश्रव और संवर का विशेष रूप से निश्चय किया गया है, ऐसे ( पवयणस्स निस्संद) प्रवचन के निस्यन्द- निचोड़ अर्थात् साररसरूप ( इणमो ) इस शास्त्र को, ( णिच्छयत्थं) निश्चय करने के लिए अथवा मोक्ष के प्रयोजन के लिए, (वोच्छामि ) कहूँगा । मूलार्थ - हे जम्बू ! इस प्रश्नव्याकरण सूत्र को, जिसमें आश्रव और संवर का विशेष विवेचन है, जिसका अर्थंरूप से प्ररूपण श्रमण भगवान् महावीर ने किया है, और महर्षि गणधरों ने जिसका सूत्र रूप से संकलन किया है, जो द्वादशांग आगम का सारभूत रस है, मैं निश्चय के लिए या मोक्षप्राप्ति के प्रयोजन के लिए कहूंगा व्याख्या 1 किसी भी शास्त्र या ग्रन्थ की उपादेयता में पांच निमित्त होते हैं(१) पूर्वापर सम्बन्ध, ( २ ) उसका प्रतिपाद्य विषय, (३) उसकी सुलभ प्राप्ति (४) आप्त द्वारा उसकी रचना एवं ( ५ ) इष्ट प्रयोजन । जिस शास्त्र में पूर्वापर सम्बन्ध नहीं होता, वह उन्मत्त के असम्बद्ध वचन की तरह आदरणीय नहीं होता । जिस शास्त्र में वास्तविक वस्तु का वर्णन न होकर 'आकाश के फूलों का सेहरा बांध कर बंध्या पुत्र विवाह करने जा रहा है' इत्यादि वाक्यों की तरह ऊटपटांग बातें लिखी गई हों या जिसमें जीवन की वास्तविक समस्या को हल करने वाली बातें न हों, वह शास्त्र भी उपादेय नहीं होता । इसी तरह जिस शास्त्र में प्रतिपादित विषय सर्वसुलभ या बोधगम्य न होकर 'तक्षकसर्प के मस्तक में ही हुई मणि का आभूषण बना कर पहनने से सब प्रकार के ज्वर नष्ट हो जाते हैं' के समान दुर्गम और दुरूह उपाय बताए गए हों, उसे भी सज्जन नहीं अपनाते । इसी प्रकार जो शास्त्र या ग्रन्थ निःस्वार्थ हितोपदेष्टा आप्त पुरुषों के द्वारा रचित नहीं होता, वह भी कोई रास्ते चलता मनचला किन्हीं बालकों से यह कहे, कि १ किसी प्रति में इससे पूर्व मंगलाचरण के रूप में 'नमो अरिहंताणं' भी मिलता है ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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