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________________ ४५६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ऐसा रोडा है, जिससे मनुष्य इस लोक में भी विषयकषायों से मुक्ति नहीं पा सकता है। वास्तव में परिग्रह मानवजीवन के विकास में या कर्मों के भयंकर आचरणों को हटाने में बहुत बड़ा बाधक है। परिग्रह के कारण मनुष्य अपनी स्वतंत्रता खो देता है, गुलाम बन जाता है। इसलिए परिग्रह को अन्तिम अधर्मद्वार बताया है। परिग्रह के सार्थक नाम परिग्रह को वृक्ष की उपमा दे कर तथा संसार में सब ओर परिग्रह का बोलबाला बताने के बाद अब शास्त्रकार परिग्रह के पर्यायवाची एकार्थक और सार्थक नामों का निम्नोक्ति प्रकार से उल्लेख करते है मूलपाठ तस्स य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होति तीसं, तंजहा१ परिग्गहो, २ संचयो, ३ चयो, ४ उवचओ, ५ निहा (दा)णं, ६ संभारो, ७ संकरो, ८ आयरो, ९ पिंडो, १० दव्वसारो, ११ तहा महिच्छा,१२ पडिबंधो,१३ लोहप्पा, १४ मंहिड्ढिया, (महिदिया) १५ उवकरणं, १६ संरक्खणा य, १७ भारो, १८ संपायउप्पायको, १९ कलिकरंडो, २० पवित्थरो, २१ अणत्थो, २२ संथवो, . २३ अगुत्ती (अकित्ति), २४ आयासो, २५ अविओगो, २६ अमुत्ती. २७ तण्हा, २८ अणत्थको, २६ आसत्ती, ३० असंतोसोत्ति वि य ; तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं ॥ (सू० १८) संस्कृतच्छाया - तस्य च नामानीमानि गुण्यानि भवन्ति त्रिशत् तद्यथा-१ परिग्रहः, २ संचयः, ३ चयः, ४ उपचयः, ५ निधानं (निदान) ६ सम्भारः, ७ संकरः, ८ आदरः, ६ पिंडः, १० द्रव्यसारः, ११ तथा महेच्छा, १२ प्रतिबन्धः १३ लोभात्मा, १४ महद्धिका (महादिका वा), १५ उपकरणम्, १६ संरक्षणा च, १७ भारः, १८ सम्पातोत्पादकः, १६ कलिकरंडः २० प्रविस्तरः, २१ अनर्थः, २२ संस्तवः, २३ अगुप्तिः (अकोतिः), २४ आयासः, २५ अवियोगः, २६ अमुक्तिः, २७ तृष्णा, २८ अनर्थकः, २६ आसक्तिः, ३० असंतोषः इत्यपि च, तस्य एतानि एवमादीनि नामधेयानि भवन्ति त्रिंशत् ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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