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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र यद्यपि नन्दी सूत्र में प्रश्नव्याकरणसूत्र की जो संक्षिप्त विषय-सूची दी गई है, उसमें अंगुष्ठादि-प्रश्न विद्याओं के प्रतिपादन का उल्लेख है, जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । प्रश्नव्याकरण की प्राचीन व्युत्पत्ति इसी प्रकार की गई है _ 'प्रश्नाः–अङ्ग ष्ठादिप्रश्न विद्यास्ता व्याक्रियन्ते-अभिधीयन्ते अस्मिन्निति प्रश्नव्याकरणम् ।' 'जिसमें अंगुष्ठादि प्रश्न विद्याओं का प्रतिपादन किया गया है, उसे प्रश्नव्याकरण कहते हैं।' वर्तमान काल में पांच आश्रव और पांच संवर का वर्णन ही दश अध्ययनों में मिलता है । इस सूत्र का दूसरा नाम 'प्रश्नव्याकरण दशा' भी मिलता है । उसका तात्पर्य यह है, कि यह सूत्र दश अध्ययनों में विभक्त है, इसमें पांच आश्रव द्वार हैं और पांच संवर द्वार हैं । इस कारण इस सूत्र के नाम के साथ 'दशा' शब्द जोड़ा गया है । पूर्वाचार्यों ने वर्तमान युग के मानवों की शक्ति, बुद्धि और वीर्य की हीनता और न्यूनता की अपेक्षा से प्रश्नादि विद्याओं के बदले इसमें जीवन के वास्तविक प्रश्नों की मीमांसा के रूप में आश्रवों और संवरों का विवेचन अवतरित कर दिया है। प्रश्नव्याकरणसूत्र दसवां अंग सूत्र है । अंगसूत्रों का प्ररूपण या अर्थकथन सीधे श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा किया गया है, बाद में गणधरों ने इन्हें शब्दों में संकलित-ग्रथित किया है । इसलिए इस सूत्र का बड़ा महत्त्व है । जो शास्त्र जीवों को अज्ञान और मोहवश अनेक दुःखों की परम्परा में उलझते देखकर उनके प्रति परम दया और हितबुद्धि से प्रेरित होकर स्वयं तीर्थंकर प्रभु के मुखारविन्द से प्राप्त है, उसकी महत्ता में कोई सन्देह नहीं रह जाता। फिर भी प्रत्येक शास्त्र के प्रारम्भ में चार प्रकार का अनुबन्ध बताना आवश्यक होता है, ताकि पाठक और श्रोता को उस शास्त्र की उपादेयता मालूम हो जाय । किसी भी शास्त्र के प्ररूपण की प्रवृत्ति के विषय में सर्वतोमुखी ज्ञान होना जरूरी है और इसे ही अनुबन्ध कहा जाता है । वह अनुबन्ध चार प्रकार का होता है-विषय, अधिकारी, सम्बन्ध और प्रयोजन । इस शास्त्र में कौन-कौन-से विषयों का वर्णन है ? यह पहले कहा जा चुका है। इस सूत्र के अधिकारी श्रमण और श्रद्धालु श्रोता हैं। जो मनुष्य रात-दिन आरम्भ-समारम्भ में और परिग्रह बढ़ाने में ही रचापचा रहता है, वह इस सूत्र के पठन और श्रवण का अधिकारी नहीं हो सकता। सम्बन्ध-इस सूत्र के साथ उपायोपेयभाव या प्रेर्य प्रेरक-भाव है। यह शास्त्र प्रेरक है-अनिष्ट (हेय) से दूर रखने और इष्ट (उपादेय) में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देने वाला है, और जिस व्यक्ति को प्रेरणा दी जाती है, वह प्रेर्य है। इसी प्रकार यह शास्त्र दुःख निवृत्ति का तथा
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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