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________________ ४२० . श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र स्त्री का दर्शन और स्पर्शन तो दूर रहा, उसका मन में चिन्तन भी मनुष्य का सत्त्व चूस लेता है। उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति तो चिन्तन मात्र से क्षीण हो जाती है। किसी नीतिकार ने कहा है 'वण-श्वयथरायासात् स च रोगश्च जागरात् । तौ च रक्तौ दिवा स्वापात् ते च मृत्युश्च मैथुनात् ॥'. . अर्थात्-परिश्रम करने से घावों पर सूजन आ जाती है और जागने से रोग उत्पन्न होता है, तथा दिन में सोने से रोग और वीर्यपात होता है, परन्तु मैथुन (स्त्रीसहवास) से तो रोग, वीर्यपात और मृत्यु तीनों ही हो जाते हैं। अतः स्त्रीसंसर्ग अपकीर्ति, रोग, शोक, दुःख-दरिद्रता और दौर्बल्य बढ़ाने वाला है, इसमें कोई संदेह नहीं। 'दुवे य लोया दुआराहगा भवंति ....."परस्स दाराओ जे अविरता'इसके अतिरिक्त जो न तो पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य का पालन करके साधुधर्म निभाते हैं और न ही मर्यादित ब्रह्मचर्यपालन (स्वस्त्री-संतोष) करके गृहस्थधर्म की मर्यादाएँही निभापाते हैं, किन्तु सुन्दर परस्त्रियों की मन में अभिलाषा करते हैं, उन्हें ताकते रहते हैं, उनके लिए मन में झूरते रहते हैं,वे न तो इस लोक को साध सकते हैं, न परलोक को। वे दोनों ही लोकों को बिगाड़ डालते हैं। इसलिए वे उभयलोक विराधक होते हैं । कहा भी है 'परदाराऽनिवृत्तानामिहाऽकीतिविडम्बना । परत्र दुर्गतिप्राप्तिवौर्भाग्यं षण्ढता तथा ॥' अर्थात्-पराई स्त्रियों के सेवन का त्याग जिन्होंने नहीं किया है, इस लोक में तो उनकी अपकीति (बदनामी) और विडम्बना (मारपीट, कैद, हत्या अपमान आदि) होती ही हैं; परलोक में भी उन्हें नरक-तिर्यञ्चगति (दुर्गति) मिलती है; मनुष्यजन्म मिलने पर भी वे भाग्यहीनता (अभागापन) और नपुसकता प्राप्त करते हैं। मतलब यह है कि परस्त्रीगामी दोनों लोकों को खो देता है । 'तहेव के इ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया .. विपुलमोहाभिभूयसन्ना'जिस मनुष्य को अपनी विवाहिता पत्नी को छोड़कर पराई स्त्रियों को खोजने की चाट लग जाती है, परस्त्रियों को अपने चंगुल में फंसाने की धुन सवार हो जाती है, वे अपनी आदत से लाचार हो कर एकदिन अपनी बुरी लालसा को पूरी करने के लिए दुःसाहस कर बैठते हैं; लेकिन आखिरकार एकदिन वे रंगे हाथों पकड़े जाते
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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