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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ३६६ होती है । (अणुब्भडपसत्थसुजातपीणकुच्छी) उनको कुक्षि नहीं उभरी हुई, प्रशस्त, सुन्दर और पुष्ट होती है । (सन्न तपासा) उनका पार्श्वभाग ठीक मात्रा में झुका हुआ, (स जातपासा) सु गठित (संगतपासा) संगत अर्थात् जचता हुआ होता है । (मियमायियपीणरइयपासा) उनका पार्श्वभाग प्रमाणोपेत--मित, उचित मात्रा में रचा हुआ, पुष्ट और सुख देने वाला है। (अकरंडुय-कणग-रुचय-निम्मल-सुजाय-निरुवहयगायलट्ठी उनकी गात्रयष्टि-देह उभरी हुई पीठ की अस्थि से रहित स्वभावतः शुद्ध हुए सोने से निमित्त रुचक नामक आभूषण के समान निर्मल या स्वर्णकान्ति से युक्त, अच्छी गठी हुई व रोगरहित होती है। (कंचणकलसपमाणसमसहियट्ट चूचुयआमेलगजमलजुयलवट्टियपओहराओ) उनके दोनों पयोधर स्तन सोने के दो कलश के समान, प्रमाणोपेत, उठे हुए-उन्नत, समान, • कठोर तथा मनोहर चूची वाले, तथा शिखर पर गोल होते हैं। (भुयंग- अणुपुव्व - तणुय - गोपुच्छवट्ट - सम - सहिय - नमिय - आदेज्ज - लडह - बाहा) उनकी दोनों भुजाएँ सर्प के समान क्रमशः पतली, गाय को पूछ के समान गोल, एक सरीखी, शिथिलता से सहित, झुकी हुई, सुभग और ललित होती है। (तंबनहा) उनके नख तांबे के समान लाल होते हैं, (मंसलग्गहत्था) उनके हाथों की पहोंची-कलाई ( या हथेली ) मांस से पुष्ट होती है। (कोमलपीवरंगुलीया) उनकी अँगुलियाँ बड़ी कोमल और पुष्ट होती हैं। (निद्धपाणिलेहा) उनके हाथों को रेखा बहुत चिकनी होती हैं, (ससिसूरसंखचक्कवरसोत्थियविभत्तसुविरइयपाणिलेहा) तथा उनको हस्तरेखाएं चन्द्रमा, सूर्य, शंख, श्रेष्ठचक्र, और स्वस्तिक के चिह्नों से अंकित और सुन्दर बनी हुई होती हैं। (पीणन्नयकक्खवस्थिप्पदेसपडिपुण्णगलकपोला) उनकी कांख और मलोत्सर्गस्थान पुष्ट व उन्नत होते हैं तथा गाल परिपूर्ण और गोल होते हैं । (चउरंगुलसुप्पमाणकंबुवरसरिसगीवा) उनकी गर्दन चार अंगुल ठीक प्रमाण वाली, श्रेष्ठ शंख के सदृश होती है। (मंसलसंठियपसत्थहणुया) उनकी ठड्डी मांस से पुष्ट, सुस्थिर और प्रशस्त होती है। (दालिमपुप्फप्पगासपीवरपलंबकुचितवराघरा) उनके निचले ओठ दाडिम--अनार के विकसित फूलों के समान लाल, कान्तिमान, पुष्ट, कुछ लंबे, सिकुड़े हुए और श्रेष्ठ होते हैं । (सुन्दरोत्तरोट्ठा) उनके ऊपर के ओठ भी बड़े सुन्दर होते हैं। (दधिदगरयकुंदचंदवासंतिमउलअच्छिद्दविमलदसणा) उनके दांत दही, पत्त पर पड़ी हुई बूंद, कुन्दपुष्प, चन्द्रमा, वासंती - चमेली की लता की कलियों के समान सफेद,छिद्र-अन्तररहित, और उजले होते हैं।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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