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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
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वज्जिया) भाई आदि बंधुओं, पुत्र आदि स्वजनों और मित्रों से रहित और (अणिट्ठा) सब लोगों के अप्रिय (भवति) होते हैं, ( अणादेज्जवुव्विणीया ) उनकी आज्ञाएँ या वचनों को लोग ठुकरा देते हैं, वे दुर्विनीत होते हैं, ( कुठाणासण- कुसेज्ज- कुभोयणा) उन्हें खराब स्थान, खराव आसन, बुरी शय्या, रद्दी भोजन मिलता है, (असुइणो ) वे गंदे और अपवित्र होते हैं, अथवा श्रुति शास्त्र के ज्ञान से रहित होते हैं, (कुसंघयणकुप्पमाण - कुसंठिया) वे निकृष्ट संहनन (शारीरिक ढाँचे ) वाले, कद के या तो बहुत ही ठिगने बौने होते हैं या बहुत लंबे होते हैं, कुसंस्थान वाले - हुडक आदि विकृत आकार के बेडौल होते हैं, (कुरूवा ) कुरूप होते हैं, ( बहुको हमाणमायालोभा) उनमें अत्यन्त क्रोध, अत्यन्त अभिमान, अतिमाया – छलकपट और तीव्र लोभ होता है, ( बहुमोहा) वे अत्यन्त मोह - आसक्ति से ग्रस्त होते हैं, अथवा अत्यन्त मूढ़ होते हैं, ( धम्मसन्नसम्मत्तपरिब्भट्ठा) धर्मबुद्धि और सम्यग्दर्शन – सम्यक्त्व से भ्रष्ट होते हैं, ( दरिदोवद्वाभिभूया) वे दरिद्रतारूपी उपद्रव के सताए हुए होते हैं, (निच्चं परकम्मकारिणो ) वे हमेशा दूसरों के ही आज्ञाधीन रह कर काम करने वाले नौकर होते हैं, ( जीवणत्थरहिया) जिंदगी – गुजरबसर करने लायक द्रव्य या साधनों से रहित होते हैं, (किविणा) कृपण होते हैं या रंक — दयापात्र या दयनीय होते हैं, ( परपिंड तक्का) दूसरों के द्वारा दिये जाने वाले भोजन की ताक में रहते हैं, ( दुक्खलद्धाहारा) बड़ी मुश्किल से आहार पाते हैं, ( अरसविरसतुच्छकयकुच्छिपूरा ) जैसे-तैसे रूखे-सूखे, नीरस तुच्छ भोजन से वे अपना पेट भर लेते हैं, ( परस्स) दूसरों की (रिद्धि-सक्कार - भोयणविसेससमुदय विह पेच्छंता ) ऋद्धि-वैभव, प्रतिष्ठा-सत्कारसम्मान, भोजन, वस्त्र, मकान आदि का रहन-सहन व पद्धति देख कर, (अप्पर्क निता) अपने आपको कोसते हैं या अपनी निंदा भर्त्सना करते हैं, (य) और ( कयंतं) अपने भाग्य को (य) और ( इह पुरेकडाइ पावगाई कम्माई परिवयंता) इस जन्म में या पहले के जन्मों में किये हुए पापकर्मों को कोसते है — धिक्कारते हैं (विमणसो) मलिन मन होकर (सोएण) शोक - अफसोस से, (डज्झमाणा ) जलते हुए (परिभूया ) तिरस्कृत- लज्जित या दुःखित ( होंति) होते हैं (य) और (सत्तपरिवज्जिया) सत्व से रहित - बेदम ( छोभा ) क्षुब्ध हो जाने वाले – कुढ़ने वाले — चिड़चिड़े स्वभाव के, (सिप्पकलासमय सत्यपरिवज्जिया) चित्र आदि शिल्पकला से अनभिज्ञ, धनुर्वेद आदि विद्याओं से शून्य और जैन, बौद्ध आदि शास्त्रों-सिद्धान्तों के ज्ञान से रहित, (जहा
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