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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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सजा भी मिलती है । पुराने जमाने में तो असत्य बोलने वाले की जीभ तक काट ली जाती थी, कई बार उसे शिकारी कुत्तों से नुचवा दिया जाता था, उसके हाथ-पैर काट लिए जाते थे । मित्र और सम्बन्धी - गण असत्यवादी से बात करना पसंद नहीं करते, उसे डांटते-फटकारते भी देखे जाते हैं । इसलिए यह तो अवश्य ही मानना पड़ेगा कि असत्य बोलने वालों का समाज और राष्ट्र में अत्यन्त घृणित जीवन बन जाता है ।
क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में असत्य का फल - लोकव्यवहार में हम देखते हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, आघात का प्रत्याघात होता है । जब कोई व्यक्ति किसी कुएं में या पहाड़ी स्थान पर जोर से चिल्लाता है कि 'तेरा बाप चोर !' तो उसी समय प्रतिध्वनि के रूप में वे ही शब्द उसे सुनने को मिलते हैं । इसी प्रकार कोई किसी को निर्बल समझ कर उस पर प्रहार करता है तो कई बार तो तुरन्त ही सबलों द्वारा सामने से प्रहार के रूप में उसी सिक्के में उसका जबाब दिया जाता है । मूसा पैगम्बर के जमाने में तो यह सजा आम प्रचलित थी कि अगर तुम्हारा कोई एक दांत तोड़ता है तो तुम उसके सारे दांत तोड़ दो। अगर कोई तुम्हारी एक आंख फोड़ता है तो • तुम उसकी दोनों आंखें फोड़ दो । हजरत मुहम्मद ने भी शुद्ध न्याय के नाम पर बराबऱ बदला लेने का फरमान निकाला था। इसी दृष्टि से जब हम विचार करेंगे तो प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया का हमें पता लगे बिना न रहेगा । इसी मनोवैज्ञानिक और सामाजिक न्याय के तथ्य को सामने रख कर शास्त्रकारों ने प्रत्यक्ष अनुभव की आँखों से मनुष्यगति में असत्य की सजा पाने वालों की बुरी हालत का वर्णन किया है । जिहोंने पूर्वजन्मों में गालियां बकी हैं, दूसरों पर झूठा आक्षेप किया है, मिथ्या दोषारोपण करके निन्दित और अपमानित किया है, उन्हें उस असत्य का फल भी प्रायः उसी रूप में मिलता है । उनकी जबान लड़खड़ाती है, तुतलाती है, लोग उन्हें चिढ़ाते हैं, उन पर झूठे आक्षेप और आरोप लगाते हैं, पद-पद पर उनका तिरस्कार करते हैं । जिन्होंने पूर्वजन्म में दूसरों के अंग-भंग करने, आंखें फोड़ने, कान काटने, जबान खींचने, बदसूरत बनाने, दूसरों को दुःखित करने और मजबूत बन्धनों से क कर बांधने का उपदेश या प्रेरणा दी है, उन्हें उसका फल प्रायः उसी रूप में इस मनुष्यजन्म में मिलता है । वे अंधे, बहरे, गूगे, अपाहिज बदसूरत और दुःखी बनते हैं, उन्हें शरीर बदबूदार, घिनौना और कुरूप मिलता है । दूसरों के गुलाम बन कर वे प्रकार की भयंकर यातनाएं और झिड़कियां सहते हैं । उन्हें नीच जनों के यहां नौकरी करनी पड़ती है, वैसी ही नीचजाति और नीच कुल के वातावरण में पैदा होने के कारण नीच कर्म करने के लिए वे बाध्य किये जाते हैं । जिन्होंने पूर्वजन्म में मिथ्या बोल बोल कर दूसरों को ठगा है, धर्म के नाम पर झूठे हिंसाजनक उपदेश दिए हैं, आत्मा-परमात्मा के नाम पर लोगों को अपनी मिथ्या मान्यता से गुमराह किया है,