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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र १६६ कृत ही है । काल की सिद्धि के लिए ज्वलन्त प्रमाण यह है कि किसी भी द्रव्य की पर्यायें उस द्रव्य को छोड़ कर नहीं रह सकतीं। मिनट, घड़ी, पहर, घण्टा, दिन, रात आदिकाल की पर्यायें हैं, इसलिए उन पर्यायों का धारण करने वाला काल भी उनके साथ ही रहेगा । इस प्रकार कालद्रव्य के बारे में नास्तिकों का निषेधात्मक कथन असत्य सिद्ध होता है । मृत्यु भी आयुष्यकर्म से सम्बन्धित है । आयुकर्म का प्रतिसमय क्षय होता रहता है । जब पूर्ण क्षय हो जाता है, तभी मृत्यु हो जाती है । इसलिए, मृत्यु तो प्रत्यक्ष सिद्ध वस्तु है, उसका अपलाप करना मिथ्या है । जगत् की रचना के सम्बन्ध में विविध दार्शनिकों के मत — जगत् की उत्पत्ति या रचना के सम्बन्ध में भी अनेक मत हैं । सर्वप्रथम शास्त्रकार पौराणिक मत का उल्लेख करते हैं— 'संभूतो अंडकाओ लोगो' - यानी 'यह सम्पूर्ण लोक अंडे से उत्पन्न हुआ है ।' 'ब्रह्माण्डपुराण' में कहा है कि पहले जगत् पंचमहाभूतों (पृथ्वी आदि) से रहित था । वह एक गंभीर महासमुद्ररूप था, इसमें केवल जल ही जल था । उसमें एक विशाल अंडा प्रादुर्भूत हुआ । चिरकाल तक वह अंडा लहरों में इधर-उधर बहता रहा । फिर वह फूटा । फूटने पर उसके दो टुकड़े हुए। एक टुकड़े से भूमि और दूसरे से आकाश बना। बाद में उसमें से सुर (देव), असुर (दानव), मनुष्य, चौपाये पशु-पक्षी आदि सम्पूर्ण जगत् पैदा हुआ। इस प्रकार उस अंडे से बना हुआ ही यह जगत् (लोक) है । सयंभुणा सयं च निम्मिओ - दूसरे पौराणिकों का मत है कि यह जगत् स्वयं ब्रह्माजी ने बनाया है । उनका मत इस प्रकार है— आसीदिदं तमोभूतमप्रज्ञातमलक्षणम् । अप्रतर्क्यमविज्ञेयं प्रसुप्तमिव सर्वतः ॥ १ ॥ तस्मिनेकार्णवीभूते नष्टस्थावरजंगमे । नष्टामरनरे चैव प्रनष्टे राक्षसोरगे ॥२॥ केवलं गह्वरीभूते महाभूतविव जिते । अचिन्त्यात्मा विभुस्तत्र शयानस्तप्यते तपः ॥३॥ तत्र तस्य शयानस्य, नाभेः पद्मं विनिर्गतम् । तरुणार्क बिम्बनिभं हृद्यं कांचन - कणिकम् ॥४॥ तस्मिन् पद्मे भगवान् दण्डयज्ञोपवीतसंयुक्तः । ब्रह्मा तत्रोत्पन्नस्तेन जगन्मातरः सृष्टाः ॥५॥ अदितिः सुरसंधानां, दितिरसुराणां मनुर्मनुष्याणाम् । विनता विहंगमानां माता विश्वप्रकाराणाम् ॥६॥ कद्रुः सरीसृपानां, सुलसा माता च नागजातीनाम् । सुरभिश्चतुष्पदानामिला पुनः सर्वबीजानाम् ॥७॥
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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