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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद - आश्रव
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कार्य नहीं होता । एक सुखी है, एक दुःखी है, एक मंदबुद्धि है, एक तीव्रबुद्धि है । कोई स्वस्थ है,कोई रोगी है, कोई बिना परिश्रम किये अपार धनराशि का उपभोक्ता बना हुआ है, दूसरा दिन-रात अथक मेहनत करने पर भी अपना पेट भी नहीं भर पाता, कोई मंत्री के पद पर है, और कोई उसी के दफ्तर में चपरासी है । ये सब विषमताएँ या विचित्रताएँ निःसंदेह पूर्वकृत शुभ-अशुभ कर्मबन्ध को सूचित करती हैं । इसी प्रकार दो सहोदर भाइयों के एक ही धनसम्पन्न घर में पैदा होने पर भी दोनों के जीवन में अन्तर दिखाई देता है । एक स्वस्थ व्यक्ति लाभान्तराय कर्म के टूटने से प्राप्त धन और साधनों का भलीभांति उपभोग कर रहा है, दूसरा घर में धन होते हुए भी चिरकाल से रोगी रहने के कारण धन और साधनों का उपभोग नहीं कर पाता । एक भाई मंदबुद्धि होने के कारण पढ़ाये जाने वाले विषय को तुरन्त समझ नहीं पाता ; जबकि दूसरा भाई तीव्र बुद्धि होने से पढ़ाये जाने वाले विषय को आसानी से ग्रहण कर लेता है । इस प्रकार के दिखाई देने वाले प्रत्यक्ष फल व उनमें अन्तर से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सब पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म ( पुण्य-पाप) के फल हैं, जिनका बन्ध • पूर्वजन्मों में हुआ है ।
इस प्रकार नास्तिकवादियों के द्वारा पुण्यपापकर्मरूप बन्ध एवं उनके फल के निषेधरूप कथन की असत्यता स्पष्ट सिद्ध हो चुकी ।
पंच य खंधे भांति केइ — इसके बाद बौद्धमतावलम्बियों की चर्चा करते हैं । बौद्धमतावलम्बी ५ स्कन्ध मानते हैं-रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार | पृथ्वीजल आदि तथा रूपरस आदि को रूपस्कंध कहते हैं । सुखरूप, दुःखरूप तथा दुःख-सुख-उभयरूप जो अनुभव होता है; उसे वेदनास्कन्ध कहते हैं । रूप, रस आदि का जो ज्ञान होता है, उसे विज्ञानस्कन्ध कहते हैं । संज्ञा के निमित्त से वस्तु का जो भान होता है, उसे संज्ञास्कन्ध कहते हैं और पुण्यपाप आदि धर्म - समुदाय को संस्कार-स्कन्ध कहते हैं । इन पांच स्कन्धों के अलावा आत्मा नाम का कोई पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता ।
मणं च मणजीविका वदंति — बौद्धों में सौत्रान्तिक, वैभाषिक, माध्यमिक और योगाचार —ये ४ दार्शनिक मत हैं । इन चारों में से एक मत वाले इन पूर्वोक्त ५ स्कन्धों के अतिरिक्त मन को और मानते हैं, और कहते हैं - यह मन ही रूपादि के ज्ञान का उपादान कारण है । इसी मन के आधार पर वे परलोक मानते हैं । उनके मत से मन ही जीव है । मन के अतिरिक्त जीव का कोई अलग अस्तित्व नहीं है । इसीलिए वे मनोजीव या मनोजीविका कहलाते हैं ।
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बौद्धमत की असत्यता - बोद्धों के इन दोनों मतों की असत्यता तो आत्मा की