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________________ प्रस्ता व ना उपाध्याय अमर मुनि प्राचीन भारतीय तत्त्वचिन्तन दो धाराओं में प्रवाहित हुआ है - 'श्रुति' और 'श्रुत' । श्रुति, वेदों की वह पुरातन संज्ञा है, जो ब्राह्मण संस्कृति से सम्बन्धित प्राचीन वैदिक विचारधारा और उत्तरकालीन शैव, वैष्णव आदि धर्म परम्पराओं का मूलाधार है । और श्रुत, श्रमण संस्कृति की प्रमुख धारा के रूप में मान्य जैन विचार - परम्परा का मूल स्रोत है। श्रुति और श्रुत में शब्दतः एवं अर्थतः इतना अधिक साम्य है कि जिस पर से सामान्यतः सहृदय पाठक को भारतीय चिन्तन पद्धति का, मूल में कहीं कोई एक ही उद्गम, प्रतिभासित होने लगता है । श्रुति और श्रुत दोनों का ही 'श्रवण' से सम्बन्ध है । जो सुनने में आता है, वह श्रुत है, और वही भाववाचक मात्र श्रवण श्रुति है । अभिधा के परिप्रेक्ष में सीधा और स्पष्ट अर्थ है इनका - ' शब्द ।२ किन्तु श्रुत और श्रुति का इतना ही अर्थ अभीष्ट नहीं है । लक्षणा के प्रकाश में इनका अर्थ है, वह 'शब्द', जो यथार्थ हो, प्रमाण हो और हो जनमंगलकारी । प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान प्रमाणों के अनन्तर जो आगमरूप शब्द प्रमाण आता है, 3, वही यह श्रुत और श्रुति है । श्रमण और ब्राह्मण दोनों ही परम्पराओं के मान्य आचार्यों ने यथार्थ ज्ञाता, वीतराग आप्त पुरुषों के विश्वजनीन, मंगलमय, यथार्थं तत्त्व वचनों को ही 'शब्दप्रमाण' की कोटि में १ - श्रुत शब्द : कर्मसाधनश्च १६२ श्रयते स्मेति श्रुतम् । - तत्त्वार्थ राजवार्तिक २ श्रूयते आत्मना तदिति श्रुतं शब्दः । - विशेषावश्यक भाष्य - मलधारीया वृत्ति ३ (क) पमाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा - पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवमे, आगमे । (ख) प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दा: प्रमाणानि - भगवती शतक ५ उद्देश ४ - - न्यायदर्शन १|१|३
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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