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________________ ३०२ अमरदीप वास्तव में यह दूसरी शैली व्यक्ति प्रधान रचनाओं में प्रयुक्त होती है, उदाहरणार्थ-शांतिनाथ चरित्र, रामायण, ऋषभ चरित्र, जंबूकुमार चरित्र आदि-आदि। तीसरी शैली जिसमें अध्ययन की प्रथम गाथा के प्रथम शब्द के आधार पर नामकरण किया जाता है, एक विशिष्ट शैली है । इसका आधार जन-प्रचलन है। वस्तुतः यह नाम जनता द्वारा दिया जाता है, इसमें रचयिता का नाम गौण हो जाता है और रचना प्रमुख हो जाती है । इस शैली के उदाहरण हैं- भक्तामरस्तोत्र, नमोत्थुणं, लोगस्स आदि । 'भक्तामर' आचार्य मानतुग रचित भक्तिपरक स्तुति काव्य है, और णमोत्थूण' शक्रन्द्र द्वारा की गई भगवान महावीर की स्तुति है तथा 'लोगस्स' है चतुर्विंशतिस्तव, इसमें वर्तमानकालीन चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति है किन्तु ये तीनों अपने-अपने काव्यों के प्रथम शब्द से जन-जन में विख्यात हैं । तीसरी शैली की प्रमुख विशेषता यह भी है कि प्रस्तुत कृति जन-जन में अधिक लोकप्रिय रही है, यह सहज ही कहा जा सकता है। आप सभी जानते हैं कि भक्ति काव्य 'भक्तामर' का जैन जगत में कितना प्रचार है, लाखों जैन और यहाँ तक कि अजैन भी इसका नित्य पाठ करते हैं। यही बात लोगस्स' और 'णमोत्थूणं' के विषय में सत्य है । सामायिक साधना के समय और यों भी अधिकांश जैनधर्मानुयायी इनका पाठ करते रहते हैं । ये दोनों पाठ भी जन-जन में बहुत प्रचलित हैं। प्रस्तुत कृति 'ऋषिभाषितानि' के नामकरण में प्रथम और तृतीयदोनों शैलियों का प्रयोग हुआ। सम्पूर्ण रचना का नाम है- इसिभासियाई अथवा ऋषिभाषितानि; अर्थात् ऋषियों द्वारा कहा हुआ; यह नाम वक्ताओं पर आधारित है। तृतीय शैली में इसके अध्ययनों के नाम रखे गये हैं । इस सम्बन्ध में ५ संग्रहिणी गाथाएँ प्राप्त होती हैं । वे ये हैं - सोयव्वं जस्स अविलेवे आदाणरक्खि माणे य । तम सव्वं आराए जाव य सद्धय णिन्वेय ॥१॥ लोगेसणा किमत्थं जुत्त सतो तत्थेव विसए। विज्जा वज्जे आरिय उक्कल णाहंति जाणामि ॥२॥ पडिसाडी ठवणा दुवेमरणे सव्वं तहेव वसे य । धम्मे य साहू सोते सवंति अहसव्वतो समेलोए ।।३।।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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