SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेष्ठ मानव का लक्षण २८१ लाभ हो या अलाभ, सुख हो या दुःख, जीवन रहे या आज ही मृत्यु हो जाए, निन्दा हो या प्रशंसा, तभी अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियों में साधक समभाव रखे । अगर साधक अपने मन पर इतना शासन, नियंत्रण या नियमन करले कि प्रिय वस्तु उसके मन को गुदगुदाए नहीं, और अप्रिय वस्तु उसके मन को डांवाडोल न कर सके, उसकी मुस्कान छीन न सके । अर्थात्, लाभ और अलाभ में उसकी मनःस्थिति सम रहे तो वह समाज में उसी तरह सुशोभित होता है जिस तरह देवसभा में देवेन्द्र । ऐसा ही मानव श्रेष्ठ है, वही मनुष्यों द्वारा पूजित, अर्चित होता है । आप भी लाभ - अलाभ आदि प्रत्येक प्रवृत्ति में समभाव रखकर आगे बढ़िये, आपको जीवन का सच्चा आनन्द आएगा । आप जीवन की श्र ेष्ठता सम्पादन कर लेंगे ।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy