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________________ २६२ अमरदीप एक फिलोसफर था। उसने अपने जीवन को इस प्रकार के सांचे में ढाला था कि उसे कभी कोई इच्छा नहीं होती थी। उसके एक शिष्य ने पूछा---'आपका जीवन इच्छा रहित कैसे बना ? _वह बोला-'मैंने सदंव यह ध्यान रखा है कि इच्छाओं की प्यास कभी बुझती नहीं, इच्छा की भूख कभी तृप्त नहीं होती, और इच्छा से कभी किसी को सुख भी नहीं मिला। तब इच्छा करने से और उसके पीछे व्यर्थ दौड़ने से क्या लाभ ? यही सोचकर मैं किसी प्रकार की इच्छा नहीं करता।" सचमुच उस दार्शनिक का यह अभ्यास प्रशंसनीय है। . वास्तव में रहीम के दोहे कितने प्रेरणादायक हैं जहाँ चाह वहाँ आह है, बनिए बेपरवाह। चाह जिन्हों की मिट गई, वे शाहन के शाह ॥१॥ चाह चमारी चोरटी सो नीचन की नीच। . मैं था पूरन ब्रह्म यदि, चाह न होती बीच ।।२।। ज्ञानसार में उपाध्याय यशोविजयजी ने इसी तथ्य को प्रगट किया है ___ निःस्पृहत्वं महासुखम्' - इच्छाओं का त्याग ही महासुख का कारण है। इच्छाभिभूत व्यक्ति की दूषित मनोवृत्ति का जिक्र करते हुए अर्ह तर्षि दीवायन कहते हैं इच्छाभिभूया न जाणंति, मातरं पितरं गुरु । अधिक्खिवंति साधू य, रायाणो देवयाणि य ॥२।। __ "इच्छाओं से घिरे हुए मनुष्य न तो माता को जानते हैं, न पिता को और गुरु को ही जानते हैं। वे साधु, राजा और देवताओं को भी तिरस्कृत कर सकते हैं।' इच्छाओं के इन्द्रजाल में फंसा हुआ मनुष्य अपनी इच्छाओं के आगे किसी को कुछ भी नहीं गिनता। उसकी इच्छापूर्ति के मार्ग में यदि कोई रोड़ा बनता है, तो वह उसका सामना करने को तैयार हो जाता है, उसे अपमानित करने में नहीं चूकता, फिर भले ही वे माता-पिता हों या गुरु हो । वह साधु, राजा और देवताओं की भी अवगणना कर बैठता है। मोहम्मद गजनवी ने जब यह सूना कि सोमनाथ महादेव के मन्दिर में अपार धन है तो उसकी लालसा बलवती हो उठी। अपनी धनप्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसने वहाँ के पुजारियों शासकों, पुरोहितों,
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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