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________________ कषायों के घेरे में जाग्रत आत्मा महाकवि सूरदास जी ने ठीक ही कहा है अचंभो इन लोगन को आवे | पगतर जरत न जानत मूरख परघर जाय बुझावे ॥ २१५ वह यह नहीं देखता है कि मेरे पैर के नीचे आग जल रही है, परन्तु दूसरे की आग बुझाने में नेता बनकर दौड़ पड़ता है । मनुष्य के दिल में दूसरों के उद्धार के लिए बहुत बड़ी बेचैनी है, पर पहले यह तो सोचें कि आपने अपना उद्धार तो कर लिया है न ? आपका अपना घर तो कहीं आग की लपटों में नहीं है । पहले अपने घर का फैसला करके फिर दूसरे के घर की ओर कदम बढ़ाएँ । साधक को चेतावनी देते हुए अर्हतषि कहते हैंसाधक ! तुम पहले अपने कल्याण के लिए जाग्रत बनो। दूसरों की चिन्ताओं से दुबले न बनो । यदि दूसरे की चिन्ताओं में डूबे रहोगे तो अपना हित खो बैठोगे । चौदहवीं गाथा का मतलब यह नहीं है कि साधक स्वार्थी बनकर विश्वहित के दायित्व से भागने लगे, अपने उत्तरदायित्व को भूल जाय । परन्तु इस गाथा का हार्द यह है कि जो दूसरों के उद्धार के लिए चल पड़े हैं, पर जिनका अपना कोई ठिकाना नहीं है, ऐसे साधकों पर यह करारा व्यंग है । दूसरों के उद्धार की फिक्र में आज का साधक साधना का तत्त्व खो बैठा है । उसकी शक्ति का मोड़ पर' को सुधारने में है । पर इस 'पर-सुधार' की दौड़ में उसका अपना घर उजड़ा जा रहा है, दूसरे के कल्याण की चिन्ता में अपना स्वत्व खो बैठा है । जैन दर्शन का मूलस्वर यह है कि प्रत्येक आत्मा अपने उत्थान-पतन के लिए स्वयं उत्तरदायी है । अनन्त तीर्थंकर मिलकर भी अन्य आत्मा के एक भी कर्मप्रदेश को कम नहीं कर सकते । निश्चय की इस भाषा में बहुत बड़ा सत्य निहित है । व्यवहारदृष्टि में दूसरे के विकास के आप निमित्त भले ही बन सके, किन्तु उसके लिए पहले अपने आपको विशुद्ध बनावें, फिर दूसरे की आत्मा का फैसला करने चलें । 1 अर्हत उन आलोचकों को बड़ी फटकार बता रहे हैं - एक व्यक्ति पाप या अनाचार की ओर कदम उठा रहा है, आपकी आँखों ने देख लिया है या ने सुन लिया है, फिर आप उसकी कटु आलोचना करके, उसे बदनाम करने हेतु रस ले-लेकर उसके दोष प्रकट करते हैं, क्या उससे उसका सुधार हो जायगा ? कतई नहीं । उसका सुधार होगा या नहीं, यह तो दूर की बात
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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