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________________ वाणी के जादूगर : प्रवचनभूषण उत्तर भारत केसरी श्री अमर मुनि वक्ता वाग्देवता का प्रतिनिधि है । वक्ता की . वाणी मुर्दो में प्राण फूंक देती है तथा पापियों को पुण्यात्मा बना देती है। ____प्रवचनभूषण श्री अमर मुनि जी एक उच्चकोटि के सन्त-वक्ता हैं । वे कवि भी हैं, भक्ति धारा में डुबकियाँ लगाने वाले सन्त हैं, और ऊँचे विचारक, विद्वान तथा लेखक भी हैं । हृदय से बड़े सरल, सबका भला चाहने वाले, अत्यन्त मृदुभाषी और वह भी अल्पभाषी, देव-गुरु-धर्म-के प्रति अटल श्रद्धा-भक्ति रखने वाले, प्रसन्नमुख और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ऐसे सन्त हैं जिनके निकट एक बार आने वाला, बार बार उनसे मिलना चाहता है, बोलना चाहता है, सुनना चाहता है और पाना चाहता है उनका आशीर्वाद । वि० सं० १९६३, भादवा सुदि ५ तदनुसार ई० सन् १९३६ सितम्बर में क्वेटा (बलूचिस्तान) के सम्पन्न मल्होत्रा परिवार में आपका जन्म हआ। आपके पिता श्री दीवानचन्द जी और माता श्री बसन्तीदेवी बड़े ही उदार और प्रभुभक्त थे। पूर्व जन्म के संस्कार कहिए या पुण्यों का प्रबल उदय, आप ११ वर्ष की लघु वय में आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के चरणों में पहुँच गये और वैराग्य संस्कार जागृत हो उठे। आचार्यश्री ने अपनी दिव्य दृष्टि से आप में कुछ विलक्षणता देखी और जब आपकी भावना जानी तो अपने प्रिय सेवाभावी प्रशिष्य भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज को कहा- "भण्डारी, इसे तुम सँभालो, यह तुम्हारी सेवा करेगा और नाम रोशन करेगा।" ११ वर्ष की आयु से ही आपने हिन्दी, संस्कृत और जैन धर्म का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया । १५ वर्ष की आयु में वि० सं० २००८ भादवा सुदि ५ को सोनीपत मण्डी में जैन श्रमण दीक्षा ग्रहण करली।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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