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उत्तर- पासेण अरहता इसिणा बुइतं, (१) जीवा चेव अजीवा चेव,
चंव |
(२) च. व्वहे लोए बियाहते --- दव्वतो लोए, खेत्तओ लोए, कालओ लोए, भावओ लोए (अत्तभावे लोए),
(३) सामित्त पहुंच्च जीवाणं लोए, णिव्र्व्वात्त पडुच्च जीवाण चेव अजीवाणं
(४) अणादीए अणिहणे परिणामिए लोयभावे,
(५) लोकतीति लोको,
है
ate का आलोक
(६) जीवाण पुग्गलाण य गतीति आहिता,
(७) जीवाणं चेव पुग्गलाणं चेव गती, दव्वतो गती, खेत्तओ गती, कालओ गती, भावओ गती,
(=) अणादीए अणिहणे गतिभावे,
(६) गमंतीति गति, उद्धगामी जीवा अहगामी पोग्गला । कम्मप्पभवा जीवा, परिणामप्पभवा पोग्गला । कम्मं पप्प फलविवाको जीवाणं, परिणामं पप्प फल विवागो पुग्गला ।
अर्थात् - प्रश्न – (१) लोक क्या है ?
-
(२) लोक कितने प्रकार का है ?
(३) लोक किसका है ?
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(४) लोक भाव क्या है ?
(५) किस मतलब से इसे लोक कहा जाता है ?
(६) गति क्या है ?
(७) किसकी गति होती है ?
(८) गतिभाव क्या है ? और
(e) किस अर्थ में गति कही जाती है ?
उत्तर - अर्हतषि पार्श्व ने ( इनके उत्तर में क्रमशः इस प्रकार ) कहा
(१) लोक जीव-अजीव रूप हैं ।
(२) वह लोक चार प्रकार का बताया गया है— (क) द्रव्यलोक, (ख) क्षेत्रलोक, (ग) काललोक और (घ) भाव-लोक; यों तो लोक अपने आप (आत्म भाव ) में है ।
(३) स्वामित्व की दृष्टि से यह जीवों का लोक हैं, और निवृत्ति, अर्थात् - रचना की दृष्टि से यह लोक जीवों का भी है और अजीवों का भी है।