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________________ कामविजय : क्यों और कैसे? १४१ करने लगा । उसका शरीर निचूड़ गया, इन्द्रियाँ शिथिल हो गईं, हाथ पैर आदि अंग ढीले पड़ गये, फिर भी कामलोलुप ययाति तृप्त न हुआ। कामान्ध ययाति बिलकुल अशक्त और जर्जर हो गया। उस आत्मकृत घोर अपराध का फल ययाति को अनेक जन्मों तक भोगना पड़ा। घोर वेदना और मानसिक कष्ट सहना पड़ा। काम-विजय के अनूठे उपाय प्रश्न होता है कि काम जब इतना प्रबल है, कि वह बड़ों-बड़ों को मात कर देता है, बड़े से बड़े धर्मधुरन्धरों, योगियों, फकीरों तक को वह पराजित कर देता है, तब उसे कैसे वश में किया जाये ? उस पर कैसे विजय प्राप्त की जाये ? अर्हतर्षि काम-विजय के लिए कुछ उपाय बताते हुए कहते हैं-- सदेव-माणुसा कामा, मए पत्ता सहस्ससो । न योऽहं कामभोगेसु तित्तपुरवो कयाइ वि ॥७॥ तित्ति कामेसु णासज्ज, पत्तपुटवं अणंतसो । दुक्खं बहुविहाकारं कक्क सं परमासुमं ॥८॥ काले काले य मेहावी, पंडिए य खणे-खणे । कालातो कंचणस्सेव, उद्धरे मालमप्पणो ॥२१॥ अंजणस्स खयं दिस्स, वम्मीयस्स य संचयं । मधुस्स य समाहार, उज्जमो संजमे वरो ॥२२॥ उच्चादीयं यं विकप्पं तु, भावणाए विभावए । ण हेमं दंतकट्ठ तु चक्कवट्टी वि खादए ।।२३।। खण थोव-मुहुत्तमंतरं, सुविहित पाउणमप्पकालियं । तस्स वि विपुले फलागमे, किं पुण जेसिद्धि परक्कमे ॥२४॥ अर्थात ---देवों और मनुष्यों के ये काम-भोग मैंने हजार-हजार बार प्राप्त किये हैं। अतः मेरे द्वारा पहले छोड़े हुए इन कामभोगों को मैं पुनः कदापि नहीं अपनाऊंगा ॥७॥ ये कामभोग मुझे पहले अनन्त बार प्राप्त हुए हैं, किन्तु यह आत्मा उनमें तृप्त नहीं हो सकी, अपितु इन कामभोगों में आसक्त होकर मैंने बहुविध कर्कश (कठोर) और परम अशुभ दुःख प्राप्त किये हैं ।।८।। मेधावी पण्डित साधक प्रतिसमय और प्रतिक्षण जागरूक रहकर सोने पर जमे हुए मैल को दूर करने की भांति अपनी आत्मा पर लगे हुए कामादि विकारमल को दूर करे -- इस प्रकार अर्हतर्षि आर्द्रक ने कहा ॥२१॥ नेत्रांजन (काजल) का क्षय, वल्मीक (दीमक) के द्वारा किया हुआ
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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