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________________ स्वधर्म और परधर्म का दायरा ११७ आध्यात्मिक खेती का मूलाधार आत्मा रूपी खेत है, जिस पर माहन को खेती करनी है । ता और संयम ये जमीन को जोतने के लिए दो हल हैं । ध्यान उस हल का फलक (फाल) है तथा संवररूपी दृढ़ बीज हैं। खेत में जमीन जोतने से पहले उस पर उगे हुए झाड़-झंखाड़ और कांटे-कंकरों को साफ करना और जमीन को मखमल-सी मुलायम बनाना जरूरी है। इसके लिए हलीसा और रस्सी (जिसे कि हलीसा से बांधा जाता है) जरूरी हैं। यहाँ सरलता (मायारहितता), नम्रता, एवं तितिक्षा हलीसा है, और दया एवं गुप्ति उसकी रस्सी है। हृदय सरल, नम्र और उदार होगा, तभी आत्म-क्षेत्र सम होगा, और उसमें बोया हुआ बीज उग निकलेगा। जिस हृदय भूमि पर वक्रता, माया, अहंकारिता, अनुदारता आदि के कांटे कंकड़ एवं झाड़-झंखाड़ होगे, उस पर बोई हुई तप-संयमरूप साधना के बीज नहीं उग सकेंगे । तथा जिस जमीन में सूर्य का प्रखर ताप एवं सर्दी के झोंके एवं वर्षा की झड़ियां सहन करने की शक्ति नहीं होती, वहाँ भी बोया हुआ बीज अंकुरित एवं विकसित नहीं होता, न ही वह उग सकता है। इसी प्रकार जिस हृदय भूमि में शीत और उष्ण, परीषह तथा उपसर्गों को सहन करने की क्षमता नहीं होती, वहाँ बोये हुए साधना-बीज विकसित नहीं होते । ऐसा साधक साधना के उच्च शिखर पर नहीं पहुंच सकता। महर्षि वेदव्यास के शब्दों में--'तीर्थानां हृदयं तीर्थः, शुचीनां हृदयं शुचिः'-तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ हृदय है और पवित्रताओं में विशुद्ध हृदय पवित्रतम है। जिस साधक का हृदय सरल, निश्छल और अन्दर-बाहर एकरूप होता है, वही हृदय शुद्ध होता है, और भगवान् महावीर के शब्दों में 'धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई'--- शुद्ध हृदय में ही धर्म टिकता है। कपट और दम्भपूर्वक की गई बाहर से साधना चाहे जितनी ऊँची दिखाई देती हो, अन्दर से वह खोखली है। उससे आत्मशुद्धि नहीं हो सकती। सोने पर किये गये मुलम्मे के समान साधना पर किये गए दम्भ, कपट आदि का मुलम्मा है, पॉलिश है। हाँ, तो आत्मा रूपी खेत के हृदयरूपी भूतल को समतल बनाने के लिए सरलता, विनम्रता एवं तितिक्षा अनिवार्य है। खेती के लिए खाद आवश्यक होती है । अच्छी खाद से फसल अच्छी और प्रचुर मात्रा में होती है। आध्यात्मिक शान्ति की फसल प्राप्त करने के
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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