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________________ तप जैसे गहन विषय हैं तो कहीं-कहीं बड़े सरल, रोचक और शिक्षाप्रद विषय भी हैं। इसलिए हो सकता है ये प्रवचन पाठकों को एक ही बार में समझ में कम आये; वे इसे पुनः पुनः, मननपूर्वक पढ़ेंगे, उन पर चिन्तन करेंगे तो विषय हृदयंगम हो सकेगा। और जैसे-जैसे वे इनकी गहराई में पहुँचेंगे, लगेगा इन में लीक से हटकर कुछ नया है, और विचार सामग्री भी नई है, सूक्तियाँ भी मन को छूने वाली हैं। ___ बहुत वर्षों से मेरी भावना थी कि इन प्रवचनों का संकलन कर पुस्तकाकार रूप प्रदान किया जाये तो अध्यात्म रसिक बन्धुओं के लिए काफी अच्छी सामग्री तैयार हो जायेगी। मेरे परम श्रद्धेय पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसन्त श्री भण्डारी जी महाराज की भी प्रेरणा रही। और मेरे शिष्य श्री सुव्रत मुनि शास्त्री एवं स्नेहीबन्धु श्रीचन्द जी सुराना की भी इच्छा थी कि इन प्रवचनों का सम्पादन प्रकाशन होना चाहिए, अब यह पुस्तकाकार 'अमरदीप' बनकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। ऋषिभाषितानि पर कुल ४८ प्रवचन हैं, २१ प्रवचन प्रथम भाग में आ चुके हैं, अतः २२ से ४८ (२४ प्रवचन) द्वितीय भाग में हैं । आशा है प्रेमी और जिज्ञासु पाठक गम्भीरतापूर्वक इन्हें पढ़कर लाभ उठायेंगे। ___इस प्रकाशन में धर्मप्रेमी श्री पी. सी. जैन के परिवार ने जो सहयोग दिया है, वह भी अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। -अमर मुनि
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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