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प्राक्कथन
देवीपुराण प्राचीन एवं प्रमुखतम शाक्त उपपुराणों में से एक है। प्रमुख रूप से सिंहबाहिनी देवी के अवतार एवं लीलाओं का वर्णन करता है । इस उपपुराण के अध्ययन से हमें देवी के स्वरूप, योगविधान व साधना देवी की प्रतिमा लक्षण एवं शाक्त पूजा विधान के अनेकानेक विषयों पर बहुत ही मूल्यवान सामग्री उपलब्ध होती है । यह पुराण नगर निर्माण एवं दुर्गस्थापत्य कला, औषध विज्ञान, तीर्थो, नगरों एवं देशों के बारे में बहुमूल्य ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध कराता है। शाक्त पूजा के सम्बन्ध में इस पुराण को प्रमुखतम स्थान दिया गया है। बंगाल और आसाम के प्राचीन और मध्ययुगीन शक्तिपूजा के सम्बन्ध में ग्रह एक प्रामाणिक शास्त्र माना जाता है। प्रायः धर्मशास्त्र के सभी निबन्धकारों ने इस पुराण से प्रचुर सामग्री का उपयोग किया है।
इस पुराण में देवी को एक तरफ तो योगनिद्रा एवं आद्या परा शक्ति कहा गया है और साथही साथ उसे उमा के रूप में शिव की पत्नी एवं महाशक्तियों, मातृकाओं एवं अन्य स्त्री देवतानों, दाक्षायणी, काली, चण्डी आदि के रूप में वर्णन किया गया है। इन सभी का वर्णन देवी के ही विभिन्न स्वरूप मानकर किया गया है। इस पुराण में देवी के विभिन्न अवतारों, उसके मूलस्वरूप, शिव एवं शिव परिवार के साथ सम्बन्ध अन्य देवताओं के साथ सम्बन्ध, वैष्णव, शेव, ब्राह्म, गाणपत्य आदि अन्य धार्मिक सम्प्रदायों के विषय में भी मूल्यवान सामग्री संगृहीत है। युद्ध विद्या, दुर्गरक्षा के उपाय, लेखनकला, लेखन सामग्री, लेखक के गुण एवं उसका पारिश्रमिक, विभिन्न वस्तुओं का दान, अनेक तत्कालीन लोकाचार एवं प्रयोग तथा भारत के तीर्थस्थल इन सभी विषयों पर सामग्री उपलब्ध होती है ।
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देवीपुराण एक बहुत ही प्राचीन ( लगभग पंचम शताब्दी ई०) उपपुराण है; उसकी विषयवस्तु एवं निबन्धकारों द्वारा प्रमाणिकता के कारण इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है परन्तु फिर भी अभी तक इसका कोई प्रामाणिक संस्करण उपलब्ध नहीं होता है। देवनागरी में तो अभी तक इसका प्रकाशन हुआ ही नहीं है । केवल मात्र श्रीयुत पंचानन तर्करत्न द्वारा बंगला अनुवाद सहित इसका प्रकाशन गतशताब्दी
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