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नवमोऽध्यायः
प्राविशय प्राविशय किलि किलि मिलि मिलि विकृतरूपधारिणि' कृष्णभुजङ्गमवेष्टितशरीरे , सर्वगृहावेशिनि प्रलम्बोष्ठि भग्ननासिके कपिलजटे ब्राह्मि भुञ्ज भुञ्ज ज्वल ज्वालामुखि , ज्वल ज्वल खल खल पातय पातय रक्तादि चूर्णापय पूर्णापय भूमि पातय पातय, शिरो गृह्ण गृह्ण चक्षुनिमीलय मोलय हृदयं भुज भुञ्ज हस्तपादौ गृह्ण गृह्ण मुद्राः , स्फोटय स्फोटय हूं हूं फट् विदारय विदारय त्रिशूलेन भेदय भेदय वज्रण , हन हन दण्डेन ताडय ताडय चक्रण छेदय छेदय शक्तिना भेदय भेदय , दंष्ट्रया कीलय कीलय कर्तिकया पाटय पाटय अङ कुशेन गुह्ण गृह्ण , शिरोतिज्वरम् एकाहिकं द्वयाहिकं याहिकं चातुर्थिकं डाकिनी स्कन्द , ग्रहान् मुश्चापय मुश्चापय तन तन उत्थापय उत्थापय भूमि पातय पातय , गृह ण गृह ण ब्रह्माणि त्राहि माहेश्वरी एहि एहि कौमारि एहि एहि वैष्णवि एहि एहि वाराहि एहि एहि ऐन्द्रि एहि एहि चामुण्डे एहि एहि कपालिनि एहि एहि महाकालि एहि एहि , रेवति एहि एहि महारेवति एहि एहि शुष्करेवति एहि एहि अाकाश रेवति एहि एहि , हिमवन्तचारिणि एहि एहि कैलाशचारिणी एहि एहि परमतन्त्रान् , छिन्द छिन्द किलि किलि विच्चे अघोरे घोररूपिणि चामुण्डे रुद्रक्रोधाद्विनिःसृते , असुरभयङ्करि आकाशगामिनि पाशेन बन्ध बन्ध कर्त्त कर्तं शमय तिष्ठ तिष्ठ , मङ्गलं प्रवेशय'१ प्रवेशय गृह, रण गृह, ण मुखं बन्ध बन्ध चक्ष र्बन्ध बन्ध हृदयं बन्ध , बन्ध हस्तपादौ बन्ध बन्ध दुष्टगृहान् सर्वान् बन्ध बन्ध सा दिशा बन्ध बन्ध , विदिशा बन्ध बन्ध१२ ऊर्ध्व बन्ध बन्ध अधस्तात् बन्ध बन्ध' 3 भस्मना पानीयेन ।
. दह......धारिणि इति यावत् क प्रतौ नास्ति ।
. २. भङ्ग क। ३. चिपिटमुखि क प्रतावधिकः ।
४. भंज भंज क। ५. शिरोरोगार्तिज्वर-काहिक-द्वाहिक-याहिक-चातुर्थक खL ६ . लल लल ख । ७. ब्रह्माणि ख ।
८. एहि एहि ख। ६. महाकपालिनि ख । १०. समयं ख।
११. मण्डलं प्रवेशय ख । १२. गृहण गृह ए इत्यारभ्य............ बन्ध बन्ध इत्यन्तः पाठो नास्ति ख । १३. सर्व बन्ध बन्ध इत्यधिकः पाठः ग ।