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________________ १६. हेमाद्रि-चतुर्वर्ग चिन्तामणि- देवीपु० अध्याय ११,१२,२१,२४,२७,३१,३२ -वीपू० अध्याय ४५,५०,५६,५८,६२,६४,६७,७४,८७,७६,८६,६१,९८,६.६.१०७.१२१ १७. वल्लालसेन-अद्भुतसागर-देवीपु० अध्याय १०० (तांत्रिक सामग्री के कारण-पुराणों से बहिष्कृत) १८. अपरार्क-याज्ञवल्क्यस्मृति व्याख्या-देवीपु० अध्याय ६२,५१,५६,७४,६७,१०२,१०४ १६. लक्ष्मीधर-कृत्यकल्पतरु--देवीपु० अध्याय १२,२३,२७,३३,५८,५६,६४,७४,७६,८६, ६१,६६,१०१-१०६,१२७ २०. जीमूत वाहन-कालविवेक-दवीपु० अध्याय २२,४८,६१,७४,६३ ।। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित प्रमाण भी देवीपुराण को प्राचीन सिद्ध करते हैं। १. 'ब्रह्मा की पूजा भारत में-२००-६०० A.D. तक प्रचलित रही एवं तदुपरान्त अप्रसिद्ध हो गई । देवीपुराण में इस पूजा का उल्लेख प्रचलित पूजा के रूप में मिलता है। अत: छठी शताब्दी से पूर्व ही इसकी रचना हो गई होगी। २. 'वाणभट्ट की कादम्बरी में शूद्रक वर्णन का साम्य-देवी पुराण में धोरासुर वर्णन से है। ३. वराहमिहिर की वृहत्साहिता से देवीपुराण में एक श्लोक का उद्धरण। ४. देवीपु० अध्याय-६६-याज्ञवल्क्यस्मृति से लिया गया है। देवीपु० अध्याय-१०८-११०-चरकसंहिता प्रथम सूत्र स्थान से लिये गये हैं। ६. देवीपुराण बौद्धधर्म की अवनत दशा का वर्णन करता है। ७. शैव और पाशुपत दो शैव सम्प्रदायों का वर्णन भी प्राप्त होता है। ८. वाम और दक्षिण दो शाक्त सम्प्रदायों का उद्धरण दिया गया है। ६. बुद्ध का विष्णु के अवतारों में ग्रहण कर लिया गया है। १०. हणों, विदेशियों, म्लेच्छों द्वारा मन्त्रविद्याओं का प्रयोग दिखलाया गया है। इस प्रकार पंचम शताब्दी इस पुराण की पूर्वसीमा स्वीकार की जा सकती है, जब कि नवम शताब्दी-प्रवर सीमा के रूप में मानी जा सकती है। देवीपु० अध्याय-४६-४६ साम्बपुराण अ० १८,२२-२३ में ज्यों के त्यों उपलब्ध होते है। निश्चित रूप से इन्हें देवी पुराण से ग्रहण किया गया है क्योंकि साम्वपुराण में भाषा अशुद्ध है। देवीपु० के श्लोक २२/७-८:६६/१३;६५/६५,६७/६३ आदि कालिकापु०-में गृहीत किये गये हैं। इन सब प्रमाणों के आधार पर इस पुराण का रचना काल पंचम शताब्दी ई० से लेकर दसवीं शताब्दी तक माना जा सकता है। मूल भाग अथवा कुछ भाग पहले लिखा गया होगा तथा परिवर्तन एवं परिवर्धन होते हुए पुराण का वर्तमान रूप दसवीं शताब्दी से पूर्व ही प्रमाणित रूप से प्राप्त हो चुका था। १. देवीपु० २.१३,३५.१८,१६,११८.२ ३. वहीं १६.३.११-कादम्बरी पृष्ठ १०-११ २. वहीं ४६.६४,१२.३४,३८ ४. वहीं ६.३२,३३.६१ ५. Hazra-Vol II P. 75 7. Hazra-Puranic Rechords. P. 41-42 ६. वहीं ३६.१४३,१३.५१-५२
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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