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________________ ३० कलौ घोरे महा प्राप्ते (महाघोरे) (१२/५) । १३-क्रिया पदों के रूप भी गलत हैं एवं प्रयोग भी गलत ढंग से हुआ है। (1) परस्मैपदी धातुओं का आत्मनेपदी प्रयोग किया गया है । भवते (२६/१२) भवति के स्थान पर। चरते (४७/१३) चरति , पश्यते (१३/७२) पश्यति , पठते (७/८४) पठति , (ii) आत्मनेपदी धातुओं का परस्मैपदी प्रयोग हुआ है। बाधन्ते के स्थान पर-बाधन्ति (१६/५,) का प्रयोग मिलता हैं। और इसी प्रकार दृश्यन्ति (८५/६०). विजयामि (२/६८), विलम्बसि (६/५६) आदि अनेक रूप प्राप्त होते हैं । १४- कर्मवाच्य एवं कत्तुं वाच्य का भी गलत प्रयोग हुआ है। विघ्नसे (विहन्यसे होना चाहिये) (२/३१-३२). कृतवान् (कृताः होना चाहिये) (२१/८) कथ्यसे (कथयसि होना चाहिये) (८३/२ ) १५-छन्दोभंग भी हुआ हैं बहुत से स्थान पर । सनक: सनत्कुमारश्च' (२/७) यहां अधिक भक्षर का प्रयोग हुआ है। 'तमायान्तं तु श्रुत्वा' (५/१२) पाद में कम अक्षर प्राप्त होते हैं । १६–समानार्थक शब्दों का एक ही पद्य में प्रयोग किया गया है। . वेद ध्वनि शब्द : (२/२.) साखिलम् सर्वम् (४/७१). सर्वतु-कुसुमै पुष्पः (९१/४२) आदि बहुत से उदाहरण दिखलाये जा सकते हैं। भाषागत इन प्रवृत्तियों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि प्राकृत एवं अपभ्रंश आदि भाषाओं का देवीपुराण की भाषा पर काफी प्रभाव पड़ा है, एवं इस कारण यह पुराण भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया है। गद्यभाग भी अधिकतर प्राकृत से प्रभावित है एवं बौद्ध ग्रन्थ महावस्तु की भाषा से समानता रखता है जो इसको भाषा की दृष्टि से प्राचीन प्रमाणित करता है । इसकी भाषा पांचरात्र मत की पौष्कर संहिता (चतुर्थ शताब्दी) एवं जयाख्य संहिता की भाषा से भी मिलती जलती है । भाषा की विशिष्टताओं का विस्तार से अध्ययन करने के लिये पृथक से अध्ययन की आवश्यकता है । इस प्रकार का अध्ययन देवीपुराण के महत्व को और भी अधिक स्पष्ट कर सकेगा। 1--R. C. Hazra-Studies in The Up-Puranas. Vol II. P. 175.
SR No.002465
Book TitleDevi Puranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpendra Sharma
PublisherLalbahadur Shastri Kendriya Sanskrit Vidyapitham
Publication Year1976
Total Pages588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, L000, & L015
File Size11 MB
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