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________________ की परमोज्ज्वल पाट परम्परा को देदीप्यमान करने वाले, अपनी धर्मदृष्टि से समूचे संघ का नेतृत्त्व कर जिनशासन का संवहन करने वाले पट्ट प्रभावक सूरि भगवंतों की श्रृंखला गौरवान्वित करने वाली है। जिस तरह एक वृक्ष की जड़, उसका मूल एक ही होता है किंतु उसकी अनेकों शाखाएं-प्रशाखाएं विकसित होती हैं जो वृक्ष को समृद्धि एवं विशालता की ओर ले जाती है, उसी प्रकार भगवान् महावीर की परम्परा में समय-समय पर अनेकों गच्छ, समुदाय रूपी शाखाएं-प्रशाखाएं विकसित हुई जो उसकी विशालता की द्योतक है। वर्तमान समय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक आम्नाय में तपागच्छ गगनदिनमणि समान जिनशासन को आलोकित करता है। उसमें भी गुरु आत्मवल्लभ की परम्परा का सविशेष स्थान है। ___गुरु भगवंतों का जीवन अनंत प्रेरणा का स्रोत है। स्वाध्याय को एक तप कहा गया है। गुरुओं के जीवन का स्वाध्याय महान तप है। उनके जीवन में क्या गुण थे, किस प्रकार उन्होंने शासन प्रभावना की, किस प्रकार उन्होंने संघ का नेतृत्त्व किया - इसके अनुशीलन से मात्र गुणानुवाद नहीं, बल्कि गुणानुराग और गुणानुपालन होता है। करना, कराना, अनमोदन करना - ये 3 करण कहे गए हैं। चारित्र की अनुमोदना से चारित्र मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होता है। इसी कारण उच्चतम चारित्र के धनी, भगवान् महावीर की अक्षुण्ण पाट परम्परा को चिरंजीवी बनाकर संघ के संरक्षण और संवर्धन से प्रेरणात्मक आदर्श स्थापित करने वाले गुरु भगवंतों का जीवन स्वाध्याय योग्य है। प्रस्तुत पुस्तक 'महावीर पाट परम्परा' में जैनाचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी म. के प्रथम शिष्यरत्न पंन्यासप्रवर श्री चिदानन्द विजय जी म.सा. ने गौरवशाली गुरु पाट परंपरा का वर्णन करते हुए पाठकवर्ग के लिए सरल एवं सरस शैली में लेखन-संकलन कर जनोपयोगी. श्रुतरत्न पिरोया है। एक एक गुरुदेव का जीवन हमें जिनशासन के प्रति गौरव की अनुभूति कराता है। गुरु भगवंतों के जीवन विषयक सम्यक् ज्ञान के प्रचार का यह उत्तम प्रयास है। संपादन सम्बन्धी सभी त्रुटियों, गलतियों, स्खलनाओं के लिए सभी से आत्मीय क्षमायाचना। अखंड संयम सर्वविरति धनी, सुगुरु स्वस्ति स्थान, गुरु पाट परंपरा परमोपकारी, सम सूर्य देदीप्यमान। देव-गुरु और धर्म कृपा से, मंगल प्रयास वेगवान, रत्नत्रयी स्वाध्याय साधना, हो जीवन जाज्वल्यमान॥ यह कृति जनोपयोगी बने, जनप्रिय बने, यही मंगल अभिलाषा..... - हिमांशु जैन "लिगा vi
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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