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________________ अनिल कुमार बने मुनि जयानंद विजय जी सुनील कुमार बने मुनि धर्मधुरंधर विजय जी प्रवीण कुमार बने मुनि नित्यानंद विजय जी 9 वर्षीय मुनि नित्यानंद विजय जी की ओजस्वी आभा से मुख मंडल देदीप्यमान था। गुरु समुद्र ने उन्हें सांसारिक पिता मुनि अनेकान्त विजय का शिष्य तथा स्वयं का प्रशिष्य घोषित किया। इस अवसर पर आचार्यश्री जी ने अपने प्रभावक उद्बोधन में कहा.- "बालमुनियों की सार संभाल करना कोई आसान काम नहीं है किंतु मुझे विश्वास है कि दूज के चंद्रमा के समान ये बालमुनि अपनी कला अवश्य विकसित करेंगे और एक दिन पूज्य गुरुदेवों का ही नहीं संपूर्ण जैन जगत् का नाम रोशन करेंगे।" शासन प्रभावना : मुनि नित्यानंद विजय जी बाल्यकाल से ही अमेय मेधा के धनी रहे। गुरु समुद्र सूरि जी की छत्रछाया में बालमुनियों का आशातीत विकास हुआ। संस्कृत-प्राकृत-काव्य-दर्शन इतिहास आदि अनेकों विद्याओं का उन्होंने गहन अध्ययन किया। उनका प्रवचन कौशल भी उत्थान की ओर था। मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में ही मुनि नित्यानंद विजय जी गुरु समुद्र के पत्र व्यवहार का कार्य भार संभालने लगे। सांसारिक पिताश्री एवं दीक्षागुरु मुनिपुंगव अनेकान्त विजय जी मौनपूर्वक दीर्घ तपश्चर्या में लीन रहे। पहले 51, फिर 61 उपवासों की तपस्या की। तृतीय चातुर्मास में उनकी भावना 71 उपवास की थी किंतु 64वें उपवास में पायधुनी के गोड़ी पार्श्वनाथ जिनालय के उपाश्रय में स्वास्थ्य बिगड़ने से 19.9.1970 को पारणा करना पड़ा एवं कुछ दिन बाद 24.9.1970 को वे काल कवलित हो गए। बालमुनियों को संयम धर्म संस्कारों से सुवासित करने में गुरु समुद्र ने स्नेहपूर्ण भूमिका निभाई। ___आचार्य समुद्र सूरि जी जब अस्वस्थ हुए, तब उन्होंने बालमुनियों की सार संभाल का दायित्व गणिवर्य श्री जनक विजय जी (आचार्य जनकचंद्र सूरि जी) को सौंपा। मुनि नित्यानंद विजय जी ने उनकी निश्रा में रहकर अहर्निश परिश्रम किया एवं गुरुसेवा एवं स्वाध्याय में लीन रहे। समुद्र सूरि जी के पट्टधर आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि जी के चरणसेवक के रूप में भी उन्होंने शासन प्रभावना के अनेक कार्य किए। उनकी योग्यता को नूतन आयाम देते हुए आचार्य इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी ने मुनि नित्यानंद विजय जी को वि.सं. 2044 में ठाणा (मुंबई) में गणि पदवी, महावीर पाट परम्परा 2900
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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