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________________ सहारे छोड़कर जाओगे? तब गुरु आत्म मुनि वल्लभ विजय जी की ओर इशारा करते थे। आचार्य विजयानंद सूरि जी समर्थ धर्मनायक, उत्कृष्ट विद्वान एवं प्रखर वक्ता की भाँति उत्तम चारित्र पालक थे। एक दिन में 300-350 गाथा तक वे कण्ठस्थ कर लेते थे। सभी 45 आगम उन्हें कण्ठस्थ थे। आगमों में जैसा वर्णित है, वैसे ही रात को सोते समय भी प्रमार्जना करके ही करवट बदलते थे, ऐसी चारित्र की सूक्ष्मता उनके रोम-रोम में थी । पालीताणा तीर्थ पर साधुत्व सुरक्षा एवं यति साम्यता के कारण पंन्यास सत्य विजय जी की भाँति उन्होंने पीली चादर धारण की। " सन् 1893 (वि.सं. 1949 ) में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म परिषद् (Parliament of World Religions) के आयोजन का निश्चित हुआ। तब जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करने का सम्मानजनक आमंत्रण आचार्य विजयानंद सूरि जी को मिला परंतु जैन साधु की आचार मर्यादा के कारण वहाँ जाना संभव न था। मुनि वल्लभविजय जी के सुझाव अनुसार उन्होंने अपनी ओर से स्वलिखित निबंध के साथ श्री वीरचंद राघवजी गांधी नामक सुश्रावक को तैयार कर उस परिषद् में जैनधर्म के प्रतिनिधि के रूप में भेजा। यह जिनशासन की विदेशों में महती प्रभावना का निमित्त बना। प. पू. विजय आनंद सूरि जी (आत्माराम ) जी का संपूर्ण जीवन सत्य की प्राप्ति उसकी सुरक्षा एवं उसके प्रचार में लगा । जंगमयुगप्रधान के रूप में उन्होंने जिनधर्म - जिनशासन के लिए अपना प्रत्येक श्वास समर्पित कर दिया। साहित्य रचना : आचार्य विजयानंद सूरि जी का साहित्य विश्वव्यापी बनाया जिसके माध्यम से उन्होंने जैन सिद्धांतों का सर्वत्र प्रचार-प्रसार किया। प्रमुख कृतियां 1) नवतत्त्व ( बिनौली में लेखन आरंभ और बड़ौत में पूर्ण, वि.सं. 1924) 2) जैन तत्त्वादर्श (गुजरावालां में सं. 1937 में प्रारंभ, होशियारपुर सं. 1938 में पूर्ण ) 3) अज्ञानतिमिर भास्कर ( अंबाला में सं. 1939 में प्रारंभ, खंभात में 1942 में पूर्ण ) 4) सम्यक्त्व शल्योद्धार ( अहमदाबाद, वि.सं. 1941 ) महावीर पाट परम्परा 270
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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