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________________ 73. आचार्य श्रीमद् विजय आनंद सूरीश्वर जी (श्री आत्माराम जी) सम्यक् धर्म के युगप्रचारक, शुद्ध संयम अंगीकार। विजयानंद सूरि आत्मारामे, नित् वंदन बारम्बार॥ शासनपति भगवान् महावीर स्वामी की परमोज्ज्वल पाट परम्परा पर 73वें पट्टधर के रूप में आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि जी (आत्माराम) जी एक समर्थ आचार्य हुए। स्वयं के सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की शुद्धि के सुदृढ़ पक्षधर होकर उन्होंने श्रुत परम्परा एवं शिष्य परम्परा का अनुदान देकर शासन की महती प्रभावना की। जन्म एवं दीक्षा : पंजाब प्रदेश के फिरोजपुर जिले के जीरा तहसील में छोटे से गाँव - लहरा में कपूर क्षत्रियवंशी गणेशचन्द्र की धर्मपत्नी रूपादेवी की कुक्षि से वि.सं. 1894 में क्षेत्रीय नववर्ष चैत्र सुदि एकम के दिन एक दिव्य नक्षत्र का जन्म हुआ। वह बालक मानो नवयुग का निर्माण करने अवरित हुआ हो। उसका नाम आत्माराम रखा गया। वह 'दित्ता' के नाम से भी प्रख्यात हुआ। पिता गणेशचन्द्र को एक विजयी योद्धा के रूप में प्रसिद्धि हासिल थी किंतु भारत की डूबती राजसत्ता एवं ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार के कारण अब उनका जीवन अस्थिर बन गया था। उन्हें न जीवन की आशा थी, न ही मृत्यु का खौफ! रूपादेवी भी अपने पति के साथ थी। उन्हें केवल अपने पुत्र की चिंता थी। वि.सं. 1906 में अपने 12 वर्षीय पुत्र को उन्होंने जीरा में रहने वाले मित्र जोधामल को सौंप दिया। जोधामल जी जैनधर्मी थे। उन्होंने धर्मपिता की भाँति दित्ता/आत्माराम को सुसंस्कारों से पोषित किया। फलस्वरूप बालक भी जैन सिद्धांतों को आत्मसात् करने लगा एवं वैराग्य भावना से ओत-प्रोत हो गया। उन दिनों मालेरकोटला में स्थानकवासी जैन संत जीवनराम जी का पदार्पण हुआ था। महावीर पाट परम्परा 267
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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