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________________ विजय जी, वृद्धिविजय जी रखा। मणिविजय जी एवं बुद्धिविजय जी की शिष्य परम्परा में अनेकानेक समर्थ शासनप्रभावक संत हुए जिन्होंने चहुँ दिशाओं में विचरण कर यतियों के साम्राज्य को भेदकर शासन की प्रभावना की। पंन्यास मणि विजय जी ने अहमदाबाद में लगातार 14 चातुर्मास किए। इसके अलावा खंभात, राधनपुर, अजमेर, बनारस, किशनगढ़, पालीताणा, पीरनगर (यह अब जलस्थ है), फलौदी, वीर कच्छ, जामनगर, लींबडी, बीकानेर, विशालपुर, भीष्मनगर आदि जगहों पर चातुर्मास करके शासन की अजोड़-बेजोड़ प्रभावना की। अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठा भी उनके करकमलों से सम्पन्न हुई। संघ व्यवस्था : ____ उस समय श्रावक समुदाय यतियों और श्रीपूज्यों के शिकंजे में पूर्ण रूप से जकड़ा था। जैन शास्त्रों में जो आचार्य के लक्षण कहे गये हैं, उसके प्रतिकूल आरंभ समारंभ करना, द्रव्यादि संग्रह करना, सचित्त आहार करना, पालकी में सवारी होना, स्वार्थपूर्ति हेतु मंत्रोच्चार करना इन यतियों का द्योतक था। निस्संदेह इनका ज्ञान बहुत था, लोगों को धर्म से जोड़ने की शक्ति भी खूब थी किंतु चारित्र सम्यक् न होने से चतुर्विध संघ की व्यवस्था प्रभावित थी। ____पन्यास मणि विजय जी ने यति परम्परा के उन्मूलन के लिए अपने शिष्यों को तैयार किया एवं पंजाब, सौराष्ट्र, मारवाड़ आदि में भेजकर संवेगी परम्परा का अनुमोदनीय विस्तार किया। उनके प्रमुख शिष्य इस प्रकार थे। 1) मुनि अमृत विजय जी 2) मुनि पद्म विजय जी 3) पंन्यास बुद्धि विजय जी (बूटेराय जी) 4) पंन्यास गुलाब विजय जी 5) मुनि हीर विजय जी 6) पंन्यास शुभ विजय जी 7) आचार्य सिद्धि सूरि जी बुद्धि विजय जी एवं सिद्धि सूरि जी का शिष्य परिवार अति विस्तृत हुआ। सिद्धि सूरि जी की दीक्षा मणि विजय जी के कालधर्म से कुछ माह पूर्व ही हुई। संवेगी परम्परा के 235 से अधिक वर्षों तक कोई आचार्य नहीं बन पाया था। बुद्धि विजय जी के समर्थ शिष्य विजयानंद सूरि जी की आचार्य पदवी वि.सं. 1943 में सम्पन्न हुई। सिद्धि सूरि जी की आचार्य पदवी वि.सं. 1957 में सम्पन्न हुई। महावीर पाट परम्परा 261
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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