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64. पंन्यास श्रीमद् क्षमा विजय जी गणि
क्षमागुण-साधक, शान्तिप्रिय, दुरित तिमिर अपहार । क्षमा विजय जी क्षमाशूर सम, नित् वंदन बारम्बार ||
संयम साधना की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी तपागच्छ की संवेगी परम्परा का संवहन करने वाले भगवान् महावीर की जाज्वल्यमान परम्परा के 64वें अक्षुण्ण पट्टप्रभावक पंन्यास क्षमाविजय जी गणि ने सम्यक् ज्ञान- दर्शन - चारित्र की रत्नत्रय की परिपालना से जिनशासन की महती प्रभावना की।
जन्म एवं दीक्षा :
मारवाड़ के गिरिराज आबू तीर्थ के सन्निकट पोयन्द्रा गाँव है, जहाँ श्री पार्श्वनाथ प्रभु का सुंदर मंदिर है। यहाँ ओसवालवंशी चामुंडागौत्र के शाह कलुशा (कला) एवं उनकी पत्नी बनां (वनां) बाई दाम्पत्य जीवन व्यतीत करते थे। उनके सुपुत्र का नाम खेमचंद था। माता-पिता की निश्रा में उसका धार्मिक एवं व्यावहारिक शिक्षण प्रगति पथ पर था।
एक बार खेमचंद का किसी कारण से अहमदाबाद ( राजनगर ) में आगमन हुआ। उसके सगे- सम्बन्धी वर्ग ने उसे प्रेमपुरा ( अहमदाबाद) उतार लिया। संयोग से पंन्यास श्री कर्पूर विजय जी के शिष्य पंन्यास वृद्धि विजय जी का प्रेमपुरा में चातुर्मासिक प्रवेश उसी वर्ष हुआ। वृद्धि विजय जी के धाराप्रवाह प्रवचनों से कुमार खेमचंद के युवा हृदय में वैराग्य की बीजांकुरण हुआ। सांसारिक व धार्मिक पढ़ाई कर 22 वर्ष की आयु में खेमचंद की दीक्षा सम्पन्न हुई । ज्येष्ठ सुदि 13 वि.सं. 1744 के दिन वे साधु जीवन में प्रविष्ट हुए तथा उनका नाम मुनि क्षमा विजय रखा गया।
शासन प्रभावना :
गुरु की सेवा एवं सिद्धांत - शास्त्रों के अध्ययन द्वारा क्षमाविजय जी अपने संयम जीवन में अग्रसर थे। तत्पश्चात् गुरु की आज्ञा से आबू, अचलगढ़, सिरोही, सिद्धपुर, मेहसाणा, चाणस्मा, राधनपुर, सांचोर, तारंगा आदि तीर्थों की धर्म स्पर्शना करते हुए अहमदाबाद पधारे। गुरु कर्पूर
महावीर पाट परम्परा
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