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________________ इनका साहित्य लेखन सुविशाल था। यन्त्रराज ग्रन्थ, कल्पसूत्र पर 9580 श्लोक प्रमाण कल्पसुबोधिका टीका, नयकुसुमांजलि (नयकर्णिका), लोकप्रकाश, पट्टावली सज्झाय, अध्यात्म गीता, उपमिति भवप्रपंच स्तवन जिनसहस्त्रनाम स्तोत्र, हैमप्रक्रिया व्याकरण ग्रंथ, भगवती सूत्र सज्झाय, इत्यादि अनेकानेक रचनाएँ महोपाध्याय विनय विजय जी की है। वे यशोविजय जी के सहपाठी भी रहे। स्तवन-सज्झाय के क्रम में उनके द्वारा रचित आदिनाथ विनंति, विनय-विलास, शाश्वतजिनभाष, महावीर स्तवन, उपधानस्तवन, षडावश्यक स्तवन, पच्चक्खान सज्झाय, आयंबिल सज्झाय आदि सुंदर शब्द संरचना के परिणाम है। उनकी सभी रचनाओं में कल्पसुबोधिका, शांतसुधारस एवं श्रीपाल रास अत्यन्त जगप्रसिद्ध हैं। शान्तसुधारस में 12 भावनाओं पर आध्यात्मिक आत्मस्पर्शी चिन्तन किया गया है। इसकी रचना उन्होंने गंधार में वि.सं. 1723 में की। वि.सं. 1738 में रांदेर में उन्होंने नवपदाराधक श्रीपाल-मयणासुंदरी रास की रचना प्रारम्भ की। किंतु 750 गाथा रचने के बाद वे कालधर्म को प्राप्त हो गए। अतएव उनकी भावना अनुसार इसकी पूर्णाहुति महोपाध्याय यशोविजय जी ने की। विनय विजय की श्रुत साधना अनुपम रही। अपने श्रुतरत्नों के माध्यम से उन्होंने जैन जगत् को महत्त्वपूर्ण देन दी। आज भी उनके अनेक ग्रंथ वांचे जाते हैं। महावीर पाट परम्परा 234
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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