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________________ 4. नौघरे का मंदिर, चाँदनी चौक, दिल्ली में प्राप्त सुमतिनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 13 गुरुवार वि.सं. 1687 में प्रतिष्ठित)। शान्तिनाथ जिनालय चुरु (राज.) में प्राप्त मूलनायक शान्तिनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसान वैशाख सुदि 3 वि.सं. 1687 में प्रतिष्ठित)। श्री माणिकंचद जी का मंदिर, भद्रावती (म.प्र.) में प्राप्त कुंचुनाथ जी की धातुप्रतिमा (लेखानुसार फाल्गुन सुदि 3 वि.सं. 1693 में प्रतिष्ठित)। ' जैनमंदिर, नासिक में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा के रजत (चाँदी) परिकर पर उत्कीर्ण लेखानुसार वैशाख वदी 2 वि.सं. 1697 में प्रतिष्ठित)। चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ में मूलनायक चिंतामणि पार्श्वनाथ जी के सिंहासन पर उत्कीर्ण (लेखानुसार भाद्रपद सुदि 5 वि.सं. 1698 में प्रतिष्ठित)। पार्श्वचन्द्रगच्छ उपाश्रय, जयपुर में सुविधिनाथ जी की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा (लेखानुसार माघ वदि 1 गुरुवार वि.सं. 1699 में प्रतिष्ठित) 10. महावीर जिनालय, सुधीटोला, लखनऊ में प्राप्त नमिनाथ जी की प्रतिमा (लेखानुसार मार्गशीर्ष वदि 10 वि.सं. 1701 में प्रतिष्ठित)। 11. सुमतिनाथ जिनालय, उदयपुर में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा (लेखानुसार मार्गशीर्ष सुदि 1, वि.सं. 1703 में प्रतिष्ठित)। 12. महावीर जिनालय, झवेरीवाड़, अहमदाबाद में प्राप्त संभवनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख वदि 2 वि.सं. 1705 में प्रतिष्ठित)। 'जैन परम्परा नो इतिहास' में त्रिपुटी महाराज ने लिखा है कि आचार्य विजय सिंह सूरि जी ने जैन प्रतिमा विधान एवं स्थापत्य कला आदि में शास्त्रानुसार नई-नई शोध को आवश्यक समझ कला प्रेमियों के लिए नए आदर्श स्थापित किए। यथा क. प्राचीन प्रतिमाओं में परिकर निर्माण। ख. लकड़ी में निर्मित कलामय जिनालय। ग. तीर्थकरों का कमलवाला समवसरण। महावीर पाट परम्परा 232
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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