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जिनप्रतिमा के अतिरिक्त चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात में आचार्य सुमतिसाधु सूरि जी द्वारा प्रतिष्ठित अंबिका देवी (तीर्थंकर नेमिनाथ जी की अधिष्ठायिका यक्षिणी) की भी धातु की प्रतिमा प्राप्त होती है। (वैशाख सुदि 3 सोमवार वि.सं. 1547 के दिन स्थापित) कालधर्म :
जैसलमेर, किशनगढ़, आबू देलवाड़ा, वढनगर, खंभात, गंधार, ईडर आदि के विविध गीतार्थों के साथ रहकर सुमतिसाधु सूरि जी ने शासन रक्षा के विविध कार्य किए। __ वि.सं. 1551 में आचार्य हेमविमल सूरि जी को गच्छ की रक्षा, वृद्धि आदि जवाबदारी सौंपकर गच्छनायक के भार से निवृत्त हुए। तीस वर्षों तक समाज से भिन्न रहकर वे निष्क्रिय रूप से साधना एवं जिनवाणी-ग्रंथभंडार- जिनालयों की रक्षा आदि कार्यों में रत् रहे। वे पुनः चतुर्विध संघ की ओर अभिमुख न होकर आत्मोन्मुखी बने व ध्यान-साधना में रहे।
वि.सं. 1581 में अमणूर नामक गाँव में उनका कालधर्म हुआ।
महावीर पाट परम्परा
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