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________________ एवं भाषा के सौंदर्य से परिपूर्ण उनकी अनेक कृतियां आज प्राप्त होती हैं। • त्रैविधगोष्ठी वि.सं. 1455 (ईस्वी सन् 1399) . अध्यात्म कल्पद्रुम वि.सं. 1484 • शांतसुधारस वि.सं. 1455 • त्रिदशतरंगिणी वि.सं. 1466 (ईस्वी सन् 1410) • चतुर्विशतिस्तोत्र - रत्नकोश वि.सं. 1455 (ईस्वी सन् 1398) . जयानंद चरित महाकाव्य (75000 श्लोक) वि.सं. 1483 (ईस्वी सन् 1427) मित्रचतुष्ककथा वि.सं. 1487 (ईस्वी सन् 1431) • उपदेशरत्नाकर (स्वोपज्ञ वृति सहित) वि.सं. 1493 (ईस्वी सन् 1437) संतिकरं (शांतिकर) स्तोत्र वि.सं. 1493/1503 • सीमंधर स्तुति, • पाक्षिक सत्तरी, . योगशास्त्र के चतुर्थ प्रकाश पर बालावबोध, वनस्पति सत्तरी, • अंगुल सत्तरी, • जीरापल्ली-पार्श्वनाथ-स्तवन वि.सं. 1473 (ईस्वी सन् 1417) • शत्रुजय श्री आदिनाथ-स्तोत्रम् वि.सं. 1476 (ईस्वी सन् 1420) . गिरनारमौलिमंडन-श्री-नेमिनाथ स्तवन वि.सं. 1476 (ईस्वी सन् 1420) • सीमंधर स्वामि-स्तवनम् वि.सं. 1482 (ईस्वी सन् 1426) • श्रीजिनपति-द्वात्रिंशिका वि.सं. 1483 (ईस्वी सन् 1427) • चतुर्विशतिजिनकल्याणक स्तवनम्, वृद्धनगरस्थ - आदिनाथ स्तवनम्, इलादुर्गालंकार-श्रीऋषभदेव स्तवनम्, सारणदुर्ग-अजितनाथ-स्तोत्रम्, वर्धमानजिनस्तवनम् आदि इनकी रचनाएं हैं। वे 'सिद्धसारस्वत' के नाम से भी विख्यात थे। महावीर पाट परम्परा 176
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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