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________________ 28) वीर्याचार यथाशक्ति पालना । पाँच गाथाओं के अर्थ का चिंतन करना । 29) संयम मार्ग प्रसादक महात्माओं से 5 हितशिक्षा ग्रहण करना व अन्यों को देना । हर रोज कर्मक्षय के हेतु 20-24 लोगस्स का काउसग्ग करना । 31 ) निद्रादि प्रमाद न करना । माण्डली के नियम का पालन करना । 30) 32) बाल साधु, ग्लान (बीमार ) साधु, वृद्ध साधु की पडिलेहन में सहायता करना । 33) उपाश्रय में प्रवेश करते समय निसीहि निकलते समय आवस्सहि कहना। नहीं तो जहाँ याद आए वहाँ नवकार मंत्र गिनना । 34-35) कार्य प्रसंगे वृद्ध साधुओं को 'हे भगवन् पसाय करी' और छोटे साधुश्री को 'इच्छकार ' कहने का भूल जाए, तो जब-जब याद आवे, तब-तब मिच्छामि दुक्कड़ कहना व वह भूल जावे, तो कोई याद दिलावे तो तुरंत नवकारमंत्र गिनना । 36 ) वडिल साधु के पूछे बिना कोई विशेष वस्तु लेना-देना नहीं इत्यादि । साधु मर्यादा पट्टक के उपरोक्त नियम अत्यंत संक्षेप में यहाँ लिखे हैं। सोमसुंदर सूरि जी विस्तृत रूप से इनका उल्लेख किया। इनके परिशीलन से ज्ञात होता है कि सामान्य साध . - साध्वी जी में शिथिलाचार इनता अधिक हो चुका था कि आचार्यश्री जी को श्रमण - श्रमणी वर्ग को उनके मौलिक मूलभूत समाचारी का पुनः स्मरण कराना पड़ा। इसके अनुसंधान से ज्ञात होता है कि इनसे पूर्व किन्हीं विजय चंद्र सूरि जी ने अपने साधु साध्वियों को अनेकों छूट दे दी, जैसे साधु को वस्त्रों के पोटले रखने की छूट हमेशा विगय वापरने की छूट वस्त्र धोने की छूट गोचरी में फल-सब्जी ग्रहण करने की छूट नीवि के पच्चक्खान में घी वापरने की छूट साध्वी द्वारा लाए आहार की साधु को वापरने की छूट गृहस्थों के साथ सदा प्रतिक्रमण करने की छूट महावीर पाट परम्परा 171
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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