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25) शब्द नवस्तव
26) भाष्यत्रयचूर्णि आदि 27) चतुः शरण प्रकीर्णक संस्कृत अवचूरि
विविध विषयों पर आचार्यश्री की लेखनी उनकी विद्वत्ता का परिचायक है। उनके ग्रंथों की शैली सरल, स्पष्ट एवं सुंदर थी एवं काव्यबद्ध रचनाएं भी भाषा के सौंदर्य से परिपूर्ण रही। संघ व्यवस्था :
इनकी निश्रा में 1800 क्रियापात्र साधु विचरते थे। इनके अनेकानेक समर्थ शिष्य थे, जिनमें इनके पट्टधर आचार्य मुनिसुंदर सूरि जी, 'कृष्णसरस्वती' बिरुद् धारक आचार्य जयसुंदर सूरि जी, महाविद्या विडम्बन टिप्पन लेखक आचार्य भुवनसुन्दर सूरि जी, दीपावली कल्प रचयिता आचार्य जिनसुंदर सूरि जी इत्यादि हैं। ___ आचार्यपद प्राप्ति के दिन से ही गच्छ के योग और क्षेम का दायित्व इन्होंने संभाला। अपने गच्छ में शिथिलाचार के उन्मूलन के लिए अनेक प्रकार के कदम उठाए। वि.सं. 1457 में क्रियोद्धारपरक कठोर कदम के रूप में साधुमर्यादा-पट्टक बनाया। जो उसका परिपालन नहीं करता था, उसे संघ से बहिष्कृत करने का सामर्थ्य उनमें था। चैत्यवास का भी खूब विरोध उन्होंने किया। साधु-साध्वी जी के 36 बोल इस प्रकार हैं1) ज्ञानाराधन हेतु प्रतिदिन 5 गाथा याद करना और क्रमवार गुरु समीपे अर्थ ग्रहण करना। 2) दूसरों को पढ़ाने हेतु 5 गाथा लिखनी और पढ़ने वाले को क्रमानुसार 5-5 गाथा पढ़ानी। 3) वर्षा ऋतु में 500, शिशिर ऋतु में 800, ग्रीष्म ऋतु में 300 गाथा का सज्झाय 4) नवपदात्मक नवकार मंत्र का प्रतिदिन 100 बार रटन करना। 5) एक वक्त 5 बड़े नमुत्थुणं का देववन्दन अथवा 2-3 वक्त यथाशक्ति आलसरहित
देववंदन करना। 6) हर अष्टमी, चौदस के दिन निकटतम सभी मंदिर जुहारना और सभी मुनिभगवतों को
वंदन करना। शेष दिनों में 1 जिनमंदिर तो अवश्य ही जाना। 7) हमेशा वडिल साधु को त्रिकाल वंदन करना और बीमार, वृद्धादि मुनियों की वैयावच्च
महावीर पाट परम्परा
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