SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1) आचार्य ज्ञानसागर सूरि - इन्होंने आवश्यक सूत्र, ओघनियुक्ति आदि ग्रंथों पर अवचूरी, मुनिसुव्रत स्वामी स्तवन, घनौघनवखण्ड पार्श्वनाथ स्तवन आदि की रचना की। आचार्य कुलमंडन सूरि - इन्होंने सिद्धान्तालापकोद्धार, विश्वश्रीधर आदि 18 चक्रबन्ध स्तवन, हारबंध स्तवन इत्यादि की रचना की। आचार्य गुणरत्न सूरि - इनका चारित्र दुष्कर कहा जाता था, उत्कृष्ट नियमों को पालते थे। इन्होंने क्रियारत्नसमुच्चय, षड्दर्शन समुच्चय की बृहवृत्ति, ओघनियुक्ति उद्धार, गुरुपर्वक्रमवर्णनम् आदि रचे। 4) आचार्य सोमसुंदर सूरि - ये इनके पट्टधर बने। इनका विशेष परिचय आगामी पृष्ठों में दिया गया है। 5) आचार्य साधुरत्न सूरि - इनके कृत ग्रंथ - यतिजीतकल्पवृत्ति एवं नवतत्त्व अवचूरि प्रसिद्ध है। इनकी प्रेरणा से शंखलपुर के 12 गांवों में जीवदया पाली गई। इनके उपरान्त भी 84 पदवीधर विभूतियां इनके शिष्य एवं आज्ञानुवर्ती परिवार को आलोकित करती थीं। महत्तरा साध्वी चारित्रचूला, महत्तरा साध्वी भुवनचूला आदि भी श्रमणीसंघ के उत्तरोत्तर उत्थान में प्रयासरत थी। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं - इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। जैसे - 1. पार्श्वनाथ देरासर, नरसिंहजी की पोल, बड़ोदरा में प्राप्त फाल्गुन सुदि 8 वि.सं. 1447 की प्रतिमा। 2. अनुपूर्ति लेख, आबू के लेख अनुसार फाल्गुन सुदि 2 बुधवार वि.सं. 1458 में प्रतिष्ठित प्रतिमा। 3. बड़ा मंदिर, नागौर में प्राप्त श्रावण सुदि 11, गुरुवार वि.सं. 1461 की प्रतिष्ठित प्रतिमा। 4. आदिनाथ जिनालय, मालपुरा में प्राप्त ज्येष्ठ वदि 11 वि.सं. 1465 की प्रतिष्ठित प्रतिमा। 5. आदिनाथ मंदिर, खेरालु में प्राप्त श्रावण सुदि 10 वि.सं. 1466 की प्रतिष्ठित प्रतिमा। 6. चिंतामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बीकानरे में प्राप्त वैशाख सुदि 7 वि.सं. 1467 की प्रतिमा। 7. माधवलाल बाबू का देरासर, पालीताणा में प्राप्त प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा। 8. जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद में प्राप्त फाल्गुन सुदि 3 वि.सं. 1469 महावीर पाट परम्परा 164
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy