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________________ 46. आचार्य श्रीमद् धर्मघोष सूरीश्वर जी धर्मघोष सूरि जी धर्मप्रभावक, चमके चारित्राचारं । पेथड़ प्रतिबोधक, अविरल लेखक, नित् वंदन बारम्बार || चरमतीर्थपति महावीर स्वामी की जाज्वल्यमान पाट परम्परा के 46वें पट्ट पर अलंकृत आचार्य धर्मघोष सूरि जी ज्ञान एवं ध्यान के अद्भुत योगी थे। वे इतिहास के प्रसिद्ध श्रावक पेड़शाह के धर्मगुरु रहे । काव्यकला एवं मंत्रशक्ति उनकी विशिष्ट शक्ति थी। धर्म का दिव्य संदेश संपूर्ण भारत में उद्घोषित कर उन्होंने जिनशासन की महती प्रभावना की । जन्म एवं दीक्षा : बीजापुर में सेठ जिनचंद्र ( जिनभद्र) वरहुडिया और पत्नी चाहिणीदेवी के 5 पुत्र थे देवचंद्र, नामधर (नागधर), महीधर, वीरधवल एवं भीमदेव तथा धाहिणी नामक पुत्री थी । भीमदेव सभी से छोटा होने के कारण सभी का प्रियपात्र था। पुत्र वीरधवल के विवाह की तैयारियां चल रही थीं। उसी समय तपागच्छाचार्य देवेन्द्र सूरि जी का बीजापुर में पदार्पण हुआ। उनके उपदेश में संसार की असारता, धर्म के प्रति अनुराग इत्यादि विषयों पर अस्खलित प्रवाह का सभी पर प्रभाव हुआ। वीरधवल का हृदय भी विवाह और वैराग्य के बीच असमंजस में फँस गया। किंतु अंततः अपने विवाह के दिन विवाह मंडप को छोड़कर वह देवेन्द्र सूरि जी के सन्निकट दीक्षा ग्रहण करने चला गया। छोटे भाई भीमदेव ने भी अपने भाई के साथ ही चारित्र अंगीकार करने का निश्चय किया। वि.सं. 1302 में बीजापुर में दोनों ने आचार्य देवेन्द्र सूरि जी के पास दीक्षा ग्रहण की। वीरधवल का नाम मुनि विद्यानंद एवं भीमदेव का नाम मुनि धर्मकीर्ति रखा गया। अति अल्प समय में दोनों ने गहन अध्ययन कर विविध विषयों पर आधिपत्य प्राप्त किया। शासन प्रभावना : मात्र थोड़े ही समय में मुनि धर्मकीर्ति जी ने आगम ग्रंथों का अर्थपूर्वक अभ्यास कर लिया । वि.सं. 1304 में आचार्य देवेन्द्र सूरि जी ने उन्हें पंन्यास पद से अलंकृत किया । वि.सं. महावीर पाट परम्परा 148
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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