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________________ 3) विशालकाय वर्णन है। जैसे - कर्म, ज्ञान, वर्गणा, निक्षेप, सिद्ध, गणधरवाद, निन्हव, अनेकान्तवाद इत्यादि। जीतकल्प भाष्य - इसमें सूत्र की 103 और भाष्य की 2606 गाथाएं हैं। प्रारंभ में आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत - इन 5 व्यवहारों का वर्णन है। प्रायश्चित विधि का प्रतिपादन भी प्रमुखतः जीव व्यवहार के आधार पर किया है। बृहत्संग्रहणी - इसमें जैन दर्शन सम्मत देव-नारकी-मनुष्य-तिर्यंच सम्बन्धी सभी प्रकार की जानकारी संग्रहित है। संग्रहणी नाम के इसी प्रकार कई ग्रंथ मिलते हैं। सभी की ___ अपेक्षा यह ग्रंथ बड़ा होने से बृहत्-संग्रहणी के नाम से प्रसिद्ध है। 4) बृहत् क्षेत्र समास - इसमें जैन दर्शन अनुसार भूगोल सम्बन्धी विस्तृत जानकारियाँ हैं। क्षेत्र समास नाम की कई कृतियाँ हैं। जिनभद्र गणि जी की सबसे विस्तृत, विश्वसनीय एवं जनोपयोगी होने से बृहत् क्षेत्र समास के नाम से प्रसिद्ध है। 5) विशेषणवती - इस ग्रंथ में आगम मान्यताओं को पुष्ट किया गया है। जैन सिद्धांत सम्मत विषयों का वर्णन एवं असंगतियों का निराकरण इसमें है। यह 400 पद्य परिमाण हैं। इसके अलावा भी अनुयोगद्वार चूर्णि, ध्यानशतक इत्यादि ग्रंथ उनके द्वारा लिखित ग्रंथ साहित्य जगत के अनमोल रत्न हैं। आगमिक परम्परा को सुरक्षित रख उसे पुष्पित - पल्लवित करने का श्रेय आचार्य जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण जी को भी जाता है। विशेषावश्यक भाष्य की रचना को संस्कृत भाषियों के लिए उपयोगी बनाने हेतु उस पर संस्कृत वृत्ति लिखना भी उन्होंने प्रारंभ किया किंतु छठे गणधर व्यक्त स्वामी तक टीका रचने के बाद ही वे आकस्मिक रूप से काल कवलित हो गए। अतः कोट्याचार्य ने अवशिष्ट टीका रचना को 13,700 श्लोक परिमाण में पूर्ण किया। वे वि.सं. 650 के आसपास विद्यमान थे। महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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