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डॉली : प्लीज़ अंकल! मुझे टॉर्चर मत कीजिए। जिनेश : ठीक है बेटा! एक बार अपनी मम्मी से बात तो कर लो। (जिनेश ने मोबाईल लगाकर डॉली को दिया। तब सुषमा रोते हुए..) सुषमा : बेटा डॉली! तू कहाँ चली गई ? देख तेरे पापा की क्या हालत हो गई है ? सिर्फ तेरा ही नाम ले रहे है। एक बार तुझे देखना चाहते है। तू जो बोलेगी हम वो करने के लिए तैयार है। एक बार घर आ जा बेटा। डॉली : प्लीज़ मॉम! ये रोने-धोने का ढ़ोंग मेरे सामने मत कीजिए। कौन-से पापा की बात कर रही हो आप? मैं तो सब छोड़ कर चली गई हूँ। अब मेरा आपसे कोई भी रिश्ता नहीं है। मैं अब आपकी बातों में आने वाली नहीं हूँ। मैं जा रही हूँ समीर के साथ। सुषमा : डॉली! यदि यही तुम्हारा फैसला है तो हमारा भी आखरी फैसला सुन लो। यदि आज तुम घर वापस नहीं आयी तो इस घर के दरवाज़े तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे। हमारे लिए तुम और तुम्हारे लिए हम मर गये हैं, समझी तुम। (सुषमा की बात पर डॉली को गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में फोन कट करके जिनेश को दे दिया और समीर का हाथ पकड़कर वहाँ से चली गई।)
(सचमुच यौवन के उन्माद में डॉली ने समीर का हाथ पकड़ कर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य कर तो लिया। लेकिन डॉली को कहाँ पता था कि ....
"प्यार क्या होता है ?, प्यार कैसा होता है ?, क्या प्यार भी कभी पूरा होता है जिसका पहला अक्षर ही अधूरा होता है"। इस प्रकार प्यार में अंधी बनी डॉली समीर के साथ हनीमून के लिए चली गई। वहाँ समीर और डॉली एक कॉटेज में ठहरे। समीर ने डॉली को कश्मीर के हर खूबसूरत स्थान पर घूमाया। समीर के प्यार के साथ कश्मीर की सैर डॉली के जीवन के अविस्मरणीय पल बन गये। एक बार रात में समीर और डॉली को डिस्को से आते हुए बहुत लेट हो गया और तब कुछ नॉनवेज होटल को छोड़कर बाकी सारे होटल बंद हो गये थे। भूख के कारण समीर का सिर दुखने लगा था। डॉली : समीर! तुम्हारी तबियत बिगड़ती जा रही है, एक काम करो तुम इस होटल में खाना खा लो। समीर : यह कैसी बात कर रही हो डॉली। याद नहीं तुम्हें, कॉलेज में मैंने तुम्हें प्रॉमिस किया था कि मैं कभी भी नॉनवेज नहीं खाऊंगा। यहाँ तक कि नॉनवेज होटल का वेज खाना भी नहीं खाऊंगा और आज यदि मैंने यहाँ खा लिया तो मेरी प्रॉमिस का क्या होगा? यह प्रॉमिस ही तो मेरे सच्चे प्यार की निशानी है।
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