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चैत्य
उसके ऊपर = + 323 चैत्य
+ 38,760 प्रतिमाजी ऊर्ध्वलोक में कुल = 84,97,023 चैत्य 1,52,94,44,760 प्रतिमाजी हुए।
अधोलोक में जिनबिंब - अधोलोक में मात्र भवनपति के 7,72,00,000 भवनों में जिनभवन है। ये सभी भवन सभा वाले होने से 180 प्रतिमाजी प्रत्येक चैत्य में हैं। जिन भवन प्रतिमाजी की संख्या 7,72,00,000x180 = 13,89,60,00,000 प्रतिमाजी तिच्छतिौक में जिनबिंब - व्यंतर एवं ज्योतिष निकाय में असंख्यात जिनभवन होने से उसकी संख्या नहीं गिन सकते। द्वीप में रहे हुए शाश्वत चैत्य एवं प्रतिमाजी की गिनती की जाती है। (जो ति लोक के विस्तार पूर्वक अभ्यास में समझ पायेंगे।) 3259 चैत्य तथा 3,91,320 प्रतिमाजी ति लोक में है। सकल तीर्थ में ये सारी गिनती दी गई है। तीन लोक में बैत्य तथा प्रतिमानी
जिनबिंब उर्ध्वलोक -
84,97,023 . 1,52,94,44,760 अधोलोक -
+7,72,00,000
+13,89,60,00,000 तिर्छालोक -
3259
+3,91,320 . 8,57,००,282 15,42,58,36,080 इन सभी शाश्वत चैत्यों में ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण एवं वर्धमान नाम वाली प्रतिमाजी है। ये शाश्वत मन्दिर एवं प्रतिमाजी पृथ्वीकाय के बने हैं। पुद्गल होने से पूरण-गलण तो चालु ही है। फिर भी जैसे पुद्गल जाते हैं वैसे ही गृहित होने के कारण प्रतिमाजी आदि का आकार शाश्वत रहता है। तथापि पृथ्वीकाय के जीव तो बदलते ही रहते हैं।
स्तुति मुझ रोमे-रोमे नाथ, तारा नाम नो रणकार हो, मुझ श्वासे-श्वासे नाथा, तारा स्मरण नो धबकार हो,
प्रगट प्रभावी नाम तारु, करे करम निकंदना, त्रणलोक ना सवि तीर्थ ने, करुं भाव थी हूँ वंदना।
कुल