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२) जम्बूद्वीप के 635 शाश्वत जिन चैत्य
शाश्वत चैत्य का स्वरुप :
सभी शाश्वत मंदिर रत्न, सुवर्ण एवं मणियों के बने हुए है। ये मंदिर कम से कम 4 कि.मी. लम्बे है। इन मंदिरों के पूर्व- -उत्तर एवं दक्षिण इन तीन दिशाओं में बड़े-बड़े दरवाज़े होते हैं। मंदिर के मध्य में पाँच सौ धनुष विस्तृत मणिमय पीठिका है। उस पर 500 धनुष लम्बा चौड़ा देवछंदक है। उस पर चारों दिशाओं में 27-27 प्रतिमाजी मिलकर कुल 108 प्रतिमाजी हैं तथा तीन दरवाज़े में 1-1 चौमुखजी होने से 3x4 = 12 प्रतिमाजी हैं। कुल एक चैत्य में 108+12 = 120 प्रतिमाजी है। ये सारी प्रतिमाजी उत्सेधांगुल से 500 धनुष की है।
प्रतिमाजी का वर्णन :
इन मूर्तियों के नख अंक (सफेद रत्न ) एवं लाल रत्न की छाँट वाले हैं। हाथ-पैर के लिये, नाभि, जिव्हा, श्रीवत्स, स्तनाग्र एवं तालु तप्त (लाल) सुवर्णमय हैं। दादी एवं मूँछ के बाल रिष्ट . (काले) रत्नों के हैं। होठ विद्रुम (लाल) रत्नों के हैं एवं नासिका लालरत्नों से युक्त सुवर्णमय है। भगवान के चक्षु लालरत्नों की छांट वाले अंक रत्नों के हैं। कीकी, आँख की पापण, केश एवं भ्रमर रिष्टरत्नमय है। शीर्षघटिका वज्रमय हैं तथा शेष अंग सुवर्णमय हैं।
प्रत्येक प्रतिमाजी के पीछे 1-1 छत्रधारिणी, दोनों तरफ पास में दो-दो चामर धारिणी एवं सन्मुख विनय से झुकी हुई 2 यक्ष की प्रतिमा, चरण स्पर्श करती हुई 2 भूत की प्रतिमा एवं हाथ जोड़ी हुई दो कुंडधारी प्रतिमाएँ हैं। प्रत्येक बिम्ब के सामने एक घंटा, एक धूपधानी, चंदन का कलश, झारी, दर्पण, थाल, छत्र, चामर तथा ध्वजा आदि वस्तुएँ रहती है। इस प्रकार ये शाश्वत मंदिर अति अद्भुत है।
(1) भरत क्षेत्र
जम्बूद्वीप में 635 शाश्वत मंदिर इस प्रकार है
- इसके मध्य में वैताढ्य पर्वत है। इसके 9 (नव) शिखर है पूर्व तरफ के प्रथम शिखर पर
- 1
तथा गंगा-सिंधु इन 2 नदी के प्रपात कुण्ड में
- 2
कुल
- 3
भरत क्षेत्र में कुल - 3 शा. चै . x 120 प्रतिमा = 360 प्रतिमा
शाश्वत चैत्य
शाश्वत चैत्य
शा. चै.