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भ्रमणा मत बढ़ाओं।”
'रुपसेन' शब्द सुनकर हाथी सोच में पड़ गया। सारी बातें सुनकर वह गहरे चिंतन में डूब गया एवं उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ । अपने पूर्व भवों को तथा सहन किए गए दुःखों को देखकर वह निश्चेष्ट बनकर भूमि पर बैठ गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। वह घोर पश्चाताप करने लगा। उसने सोचा, ठीक ही कहा है सुनंदा ने । मोहान्ध बन मैंने अपने अमूल्य मानव भव के साथ-साथ अपनी भवोभव की परम्परा को भी बिगाड़ दिया है। सुनंदा तो भाग्यशाली है जिसने कुकर्म करके भी अपनी आत्मा का उद्धार किया। मैं मूढ बनकर अपने 6-6 भव बर्बाद कर चुका हूँ और आज जब मुझे सही ज्ञान की प्राप्ति हुई तो मैं कुछ भी करने में असमर्थ हूँ। मेरा क्या होगा ?"
हाथी की मनः स्थिति को जानकर सुनंदा ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, “रुपसेन ! चिंता मत करो। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। बाज़ी अब भी तुम्हारे हाथ में है । इसे हाथ से मत जाने दो। अब तुम अपना शेष जीवन तप, त्याग, ध्यान, साधना में व्यतीत करें। अपने पशु अवतार को गौण कर भावपूर्वक परमात्मा की शरण स्वीकार करों।" इस प्रकार आश्वस्त होकर हाथी ने अपनी सूंड से सुनंदा साध्वी को वंदन किया। ‘धर्मलाभ’ कहकर सुनंदा साध्वीजी वहाँ से चली गई। बाद में वह हाथी भी उसी नगर के राजा की हस्तशाला में रहकर दृढ़ता पूर्वक तप और ब्रह्मचर्य का पालन कर अंत समय में समाधि पूर्वक मर कर आठवें देवलोक में उत्पन्न हुआ । मानव भव हार कर भी पशु भव जीत गया।
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यहाँ सुनंदा साध्वी भी पुन: आराधनारत हो गई। अपने भावों के बल पर शुक्ल ध्यान पर आरुढ होकर अपने घनघाति कर्मों को जलाकर केवली पद प्राप्त किया। पृथ्वी तल को पावन कर तथा भव्य जीवों बोध देकर अंत में अघाति कर्मों का भी क्षय कर मोक्ष स्थान को प्राप्त किया।
विष भी मारता है और विषय भी । फर्क इतना ही है कि विष मात्र एक बार मारता है परंतु विषय भवोभव को बर्बाद करता है। इसके ज्वलंत उदाहरण के रुप में रुपसेन की यह कथा पढ़कर वर्तमान में आधुनिकता तथा भोग विलास में रंगे युवक, युवतियाँ सावधान! रुपसेन तो पुण्यशाली था जो उसे उस काल में त्रिकाल ज्ञानी गुरु का योग प्राप्त हुआ। इतने भटकने के बाद रुपसेन का उद्धार हुआ। परंतु अफेर के मादक वातावरण में फँसे युवक-युवतियों के लिए यह समझने जैसा है कि इस पंचम काल में तुम्हारा इतना पुण्य नहीं है कि तुम्हें ऐसे त्रिकालज्ञानी गुरु का योग प्राप्त हो सके। मात्र दृष्टि से किए गए पाप के कारण रुपसेन और सुनंदा की कहानी का अंत 7 वें भव में आया । परंतु तुम्हारी विषय वासनाओं की भयंकरता का अंत 50-500- 5000 न जाने कितने भवों में आएगा यह विचारणीय है । अत: दूर से ही इन विषय वासनाओं का त्याग कर अपने जीवन को दुर्गति में जाने से बचाए ।
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