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________________ Desमुद्राओं की विशेष समझा एवं उपयोग कर चित्र। इसमें दोनों हाथ-दोनों घुटने एवं मस्तक ये पाँच अंग ज़मीन को स्पर्श होने चाहिए। एवं 17 प्रमार्जना निम्न प्रकार से करें। वांदणा में भी इस 17 प्रमार्जना का उपयोग रखें। खड़े - खड़े पीछे दोनों पैरों के घुटने एवं बीच के भाग में 3 प्रमार्जना आगे दोनों पैरों के घुटने एवं बीच के भाग में 3 प्रमार्जना खमासमणा में जहाँ पैर, मस्तक एवं हाथ रखना है उस के आगे की भूमि पर 3 प्रमार्जना बैठने के बाद दोनों हाथों पर मुँहपत्ति से '2 प्रमार्जना चरवले के ऊपर जहाँ मस्तक रखना हो वहाँ मुँहपत्ति से 3 प्रमार्जना खड़े होते समय पैर रखने के स्थान पर पीछे 3 प्रमार्जना कुल 17 प्रमार्जना चित्र इरियावहियं आदि खड़े-खड़े जो सूत्र बोले जाते हैं, वे खड़े-खड़े योग मुद्रा में बोलें। सूत्र बोलते समय मुँहपत्ति का खुला भाग दायीं तरफ रखें एवं उसमें किनारी नीचे होनी चाहिए। चित्रउ दोनों हाथ को कोहनी तक मिलाकर पेट से स्पर्श करें एवं दोनों हाथ की अंगुलियाँ एक-दूसरे हाथ में डालें (बैठे-बैठे योग मुद्रा)। चित्र4 मुक्तासुक्तिमुद्राः इस मुद्रा में दोनों हथेली को छीप आकार की बनाएँ। चित्र काउस्सग्ग मुद्रा : काउस्सग्ग इस मुद्रा में किया जाता है तथा काउस्सग्ग के समय 19 दोष का त्याग करना चाहिए, जैसे की अंगुली, होठ, जीभ, शरीर, आँखे, मस्तक आदि नहीं हिलाना एवं पैर तथा हाथ को बराबर मुद्रा के अनुसार रखना । दो पैर के बीच आगे चार अंगुल और पीछे चार अंगुल से कुछ कम जगह छोड़े। काउस्सग्ग के समय चरवला बायें हाथ में एवं मुँहपत्ति दायें हाथ की दो अंगुलियों में रखें। चरवले की डंडी आगे एवं दशी पीछे रहनी चाहिए। मुँहपत्ति का खुला भाग पीछे की तरफ रखें। चित्र 6 से 11 तक चित्र के अनुसार समझें। चित्र 12 वांदणा की मुद्राः निम्न आवर्तों के उच्चारण हेतु चित्र में वर्णित अ इ उ ऊ मुद्रा का उपयोग करें । अहो, कायं, काय, जत्ता भे, जवणि जं च भे । A-अ B-हो A-का B-यं 410
SR No.002438
Book TitleJainism Course Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManiprabhashreeji
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2012
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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