________________
Cer 3. खमासमण (पंचांग प्रणिपात) सूत्र मदर भावार्थ - परमात्मा एवं गुरुजनों को पंचांग प्रणिपात-वंदन करने के लिए इस सूत्र का प्रयोग किया जाता है। 'इच्छामि 'खमासमणो 'वंदिउं 'हे क्षमाश्रमण! मैं आपको सुख-शाता पूछकर 'जावणिज्जाए निसीहिआए, अविनय-आशातना की क्षमा मांगकर 'वंदन करना चाहता हूँ। 'मत्थएण'वंदामि ।। 'मस्तक नमा कर 'मैं वंदन करता हूँ।
4. इच्छकार सुहराई (सुखशाता पृच्छा) सूत्र पर भावार्थ - इस सूत्र के द्वारा गुरुमहाराज को सुखशाता-कुशलता पूछी जाती है एवं गोचरी का निमंत्रण दिया जाता है। 'इच्छकार!
हे गुरुदेव ! 'आपकी इच्छा हो तो मैं पूर्छ ? 'सुह- राई ? (सुह-'देवसि ?) 'आपकी रात्री (दिवस) सुख पूर्वक व्यतीत हुई। 'सुख-'तप ? 'शरीर-'निराबाध? तप सुख पूर्वक चल रहा है ? 'शरीर बाधा रहित है ? "सुख- संजम-"जात्रा 'निर्वहो छो जी ? संयम यात्रा का निर्वाह "सुख पूर्वक हो रहा है ? 19 स्वामि !"शाता छे जी ?
हे स्वामिन्! "आपको सब प्रकार की शाता है ? भात-पाणीनो लाभ देजो जी।
HP 5. 'अब्भुडिओ' सूत्र (गुरु खामणा सूत्र) पर भावार्थ - इस सूत्र में अपने द्वारा गुरु महाराज का जो अविनय हुआ हो, वह प्रगट करके क्षमा माँगी जाती है। 'इच्छाकारेण संदिसह 'भगवन् ! 'हे भगवन्! आपकी इच्छा से मुझे आदेश दे।
अब्भुट्ठिओमि अभिंतर मैं रात्री ('दिन) के भीतर किए हुए अपराधों की क्षमा याचने 'राइअं('देवसिअं) 'खामेउं के लिए उपस्थित हुआ हूँ। (यहाँ गुरु 'खामेह' कहें )
मैं आपके आदेश को स्वीकार करता हूँ। "खामेमि "राइयं (''देवसिअं)।।1।। रात्रिक ('देवसिक) अपराधों को "खमाता हूँ।।1।। 'जंकिंचि अपत्तिअं परपत्तिअं, 'जो कुछ (आपको) अप्रीतिकर, अत्यन्त अप्रीतिकर 'भत्ते, पाणे, विणए, 'वेयावच्चे, आहार में, पानी में, विनय में, वैयावच्च (सेवा) में
"इच्छं,