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जयणा- साहेबजी! आज के ज़माने में आप मन शुद्धि तथा आहार शुद्धि की बातें करेंगे तो शायद ही कोई मानेगा। यदि आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सचोट जवाब दे तो हम माने कि हाँ, सचमुच रात्रिभोजन करने जैसा ही नहीं है। साहेबजी- हाँ जयणा! तुम्हारे इस प्रश्न का भी जवाब मेरे पास है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार:* सूर्यास्त के बाद सूक्ष्म जंतु चारों ओर उड़ने लगते है। ये सूक्ष्म जंतु फोकसलाईट के प्रकाश में खुली आँखों से भी नहीं दिखतें। * सूर्यास्त के बाद डॉक्टर भी मेजर ऑपरेशन नहीं करते। वे भी मेजर ऑपरेशन के समय डे-लाईट (सूर्य-प्रकाश) की अपेक्षा रखते है। क्योंकि सूक्ष्म जंतु ऑपरेशन के समय शरीर के खुले भाग में चिपक जाए तो ऑपरेशन निष्फल हो जाता है। * रात के समय भोजन पर भी ये सूक्ष्म जंतु चिपक जाते हैं और खाने के साथ-साथ पेट में चले जाते हैं। जिससे शरीर रोगग्रस्त बन जाता है। * इसी प्रकार भोजन के पाचन के लिए जरुरी ऑक्सीजन का प्रमाण सूर्य की उपस्थिति में ही मिलता है। क्योंकि पेड़-पौधे दिन में कार्बनडाई-ऑक्साईड ग्रहण करके ऑक्सीजन छोड़ते हैं। * रात में होजरी का कमल मुरझा जाता है जो सूर्योदय के साथ खुलता है। इसलिए रात्रि में किया हुआ भोजन सुपाच्य नहीं होता। सुबह होजरी का कमल थोड़ा खिलता है। इसलिए हल्का नाश्ता लिया जाता है। दोपहर तक होजरी का कमल पूर्णत: खिल जाता है, तब पूरी खोराक ली जाती है और वह सुपाच्य बनती है। * हजारों लाईट का प्रकाश होने पर भी कमल नहीं खिलता। वह तो सूर्य के प्रकाश से ही खिलता है। इससे पता चलता है कि सूर्य का कार्य सूर्य ही कर सकता है। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण मैं तुम्हें बताती हूँ- अपने ही जैन समाज की एक लड़की अट्ठाई का पारणा करके रविवार की रात को लॉरी पर पानीपुरी खाने गयी। उसने पानीपुरी खायी। पानीपुरी के साथ एकाध जिंदी लट उसके पेट में चली गई। जिससे सबेरे उठते ही उसके पूरे शरीर, आँख, कान, नाक, नाभि, मुँह आदि छिद्रों से लटें निकलने लगी। उसकी जाँच करवाने पर डॉक्टर ने कहा - इसका मरण के सिवाय दुसरा कोई इलाज़ नहीं है। अर्थात् रात्रि में सूर्य का प्रकाश न होने के कारण एवं वहाँ बिना छाना हुआ पानी, बासी घोल, कई दिनों के आटे से बनी हुई वस्तुएँ होने से उन पदार्थों में न जाने कैसे-कैसे सूक्ष्म जीव-जंतु होते हैं जो आज नहीं तो थोड़े दिन बाद हमें धोखा देने वाले ही है। जयणा - (चौंककर) क्या ? एक बार रात्रिभोजन करने का इतना बुरा परिणाम?
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